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जैन धर्म का मौलिक इतिहास - द्वितीय भाग
शालिवाहन शाक-संवत्सर
प्रतिष्ठान राज्य के अधिपति सातवाहन वंशीय गौतमीपुत्र सातकर्णी ने शक्तिशाली शक- शासक नहपान को मार कर तथा भारत के दक्षिणी भाग, सौराष्ट्र एवं गुजरात से शक महाक्षत्रपों का समूलोन्मूलन कर शकारि विक्रमादित्य का विरुद धारण करने के साथ-साथ वीर निर्वारण संवत् ६०५, तदनुसार विक्रम सं० १३५ तथा ई० सन् ७८ में शाक-संवत्सर प्रचलित किया ।
६०४.
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प्राचीन कथासाहित्य के प्राधार पर सातवाहन वंश के सम्बन्ध में अनुमान किया जाता है कि संभवतः प्रान्ध्र के किसी नागवंशीय शासक एवं महाराष्ट्रीय . विधवा ब्राह्मरणी के संयोग से सिमुक नामक बालक का जन्म हुआ, जो प्रागे चल कर सातवाहन वंश का संस्थापक हुआ । “प्रबन्ध कोश" के सातवाहन प्रबन्ध प्रर अलबरूनी द्वारा किये गये उल्लेख से यह सिद्ध होता है कि सातवाहनवंश का मूल पुरुष सिमुक विक्रमादित्य का समकालीन था । "
सातवाहन वंश में अनेक प्रतापी, शक्तिशाली और विद्वान् राजा हुए हैं । सातवाहन राजवंश के राजाओं ने भारतभूमि पर शकों के शासन का अन्त करने में बड़ा महत्वपूर्ण योगदान किया । वायुपुराण में सातवाहन वंश के १६ राजाओं का नामोल्लेख किया गया है, जो इस प्रकार है :
१. शिशुक ( सिमुक ), २. कृष्ण, ३. सातकरिण, ४. पुलुमायी, ५. श्ररिष्टकर्ण, ६. हाल (गाथासप्तसती का रचयिता ), ७. पत्तलक, ८. पुरीन्द्रसेन, ह. सुन्दर, १०. चकोर, ११. शिवस्वाति, १२. गौतमीपुत्र, १३. पुलुमायी - (द्वितीय), १४. शिवश्री, १५. शिवस्कन्द, १६. यशश्री, १७ विजय, १८. चन्द्रश्री श्रौर, १६. पुलुमायी (तृतीय) *
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तथा सातवाहन नूतनया भग्नमवन्तीशितुर्बलम् । विक्रमनरपतिरपि पलाय्य ययाववन्तीम् । तदनु सातवाहनो राज्येऽभिषिक्तः प्रतिष्ठानं च निज-निज विभूति परिभूतवस्वीकसाराविधान् धवलगृह देवगृहट्टपंक्तिराजपथप्राकारपरिखादिभिः सुनिविष्टमजनिष्ट पत्तनम् ।
[ प्रबन्धकोश, सातवाहन प्रबन्ध, पृ० ६८ ]
२ (क) शिशुकोऽन्ध्रः सजातीयः प्राप्स्यतीमां बसुन्धराम् । त्रयोविंशत्समाराजा शिशुकस्तु एकोनविंशति ते प्रान्ध्रा भोक्यन्ति
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भविष्यति ॥ २ ॥
वं महीम् ||१६||
[ मत्स्य पुराण, कलौ भाविनृपान्वयवर्णनम् ]
(ख) सिन्धुको प्रजातीयः, प्राप्स्यतीमां वसुन्धराम् । . त्रयोविशत्सवा राजा सिन्धुको भविता त्वथ ।। ३४८ ।। भ्रष्टी भातस्श वर्षाणि तस्माद्दश भविष्यति ( ? ) ।। ३४६ ।। श्री शातकरिंगविता तस्य पुत्रस्तु वै महान् । पंचाशतं समाः षट् च शातकरिणर्भविष्यति ।। ३५० ।। ततः संवत्सरं पूर्ण हालो राजा भविष्यति ।। ३५२ ।।
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