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सातवां निहव गोष्ठामाहिल] सामान्य पूर्वधर-काल : प्रार्य रेवती नक्षत्र
५६९ का अन्तिम समय अब सनिकट आ चुका है। ऐसी स्थिति में उन्होंने अपना जाना उचित न समझकर शास्त्रार्थ में कुशल एवं सुयोग्य अपने शिष्य गोष्ठामाहिल को मथुरा भेजा।
__ अपने गुरु की आज्ञा को शिरोधार्य कर गोष्ठामाहिल मथुरा पहुंचे। प्रक्रियावादियों के साथ गोष्ठामाहिल ने शास्त्रार्थ प्रारम्भ किया। गोष्ठामाहिल के प्रबल तर्कों एवं अकाट्य युक्तियों के समक्ष प्रक्रियावादियों के पैर उखड़ गये। मध्यस्थों एवं सभ्यों ने सर्वसम्मत समवेत स्वरों में प्रक्रियावादियों को पराजित और गोष्ठामाहिल को विजयी घोषित किया। जिनशासन की महती प्रभावना हुई और संघ में सर्वत्र हर्ष की हिलोरें लहरा उठीं। विजयी होकर गोष्ठामाहिल गुरुसेवा में दशपुर लौटे। उनके साथ मथुरा संघ के प्रतिष्ठित प्रतिनिधि भी थे। उन्होंने आर्य रक्षित से प्रार्थना की कि वे मुनि गोष्ठामाहिल को मथुरा नगरी में चातुर्मास करने की प्राज्ञा प्रदान करें। संघ की प्राग्रह एवं अनुनयविनयपूर्ण विनति को आर्य रक्षित ने स्वीकार किया और गोष्ठामाहिल ने पुनः मथुरा की ओर विहार किया।
चातुर्मासावधि में जब आर्य रक्षित दशपुर में और उनके शिष्य गोष्ठामाहिल मथुरा में थे, उस समय आर्य रक्षित ने अपने शरीर की स्थिति क्षीण और प्रायु का अन्तिम समय समीप समझकर संघ के समक्ष अपने उत्तराधिकारी के विषय में विचार विमर्श किया। प्रार्य रक्षित के शिष्य-सग्रह में घृतपुष्यमित्र, वस्त्रपुष्यमित्र, दुर्बलिका पुष्यमित्र, विन्द्य, फल्गुरक्षित और गोष्ठामाहिल ये ६ शिष्य बड़े प्रतिभाथाली थे। आर्य रक्षित के मुनिमण्डल में से कतिपय मुनि मार्य फल्गुरक्षित को और कुछ मुनि गोष्ठामाहिल को प्राचार्य पद का उत्तराधिकारी बनाने के पक्ष में थे। पर आर्य रक्षित केवल दुर्बलिकापुष्यमित्र को ही अपने उत्तराधिकारी प्राचार्य पद के योग्य समझते थे।
अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करने के प्रश्न के सम्बन्ध में जब प्रार्य रक्षित ने अपने शिष्यसमह में मतभेद देखा तो उन्होंने बड़ी ही सूझबूझ से काम लिया। सबको एकत्रित कर वे बोले- "कल्पना करो कुछ इंगितज्ञ श्रावकों ने यहां तीन घड़े प्रस्तुत किये। उनमें से एक घड़े में उड़द, दूसरे में तेल और तीसरे में धृत भरा और साधुसमूह एवं समस्त संघ के समक्ष उन तीनों घड़ों को दूसरे तीन घड़ों में क्रमशः उल्टा करवा दिया। उन तीनों रिक्त घड़ों में कितना कितना उड़द, तेल और घृत प्रवशिष्ट रहेगा ?"
मार्य रक्षित का प्रश्न सुनकर शिष्यों एवं श्रावकप्रमुखों ने उत्तर दिया"भगवन् ! जो घट उड़द से भरा था, वह पूर्णतः रिक्त हो जायगा, तेल के घट में थोड़ा बहुत तेल.प्रवशिष्ट रह जायगा पर घृत के घट में घृत इधर-उधर चारों पोर चिपके रहने के कारण पर्याप्त मात्रा में प्रवशिष्ट रह जायगा।"
- प्रार्य रक्षित ने अपने शिष्यसमूह और संघमुख्यों को सम्बोधित करते हुए निर्णायक स्वर में कहा- "उड़द धान्य के पद की तरह में प्रपना समस्त मान
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