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..अनुयोगों का पृषककरण] सामान्य पूर्वधर-काल : मायं रेवती नक्षत्र
५६७ . ही उपादेय नहीं मान लें तथा सूक्ष्म विषय में मिथ्याभाव नहीं प्रहण करें, एतदर्थ नयोंका विभाग नहीं किया।
मार्य रख- गणाचार्य मार्य वज्र के मार्य वनसेन, प्रार्य पद्म और आर्य रथ - ये तीन प्रमुख शिष्य थे। पार्य वनसेन को कालान्तर में प्रार्य रक्षित तथा प्रार्य दुर्बलिका पुष्यमित्र के पश्चात युगप्रधानाचार्य पद पर नियुक्त किया गया। मार्य पद्य से मार्य पमा शाखा तथा पार्य रथ से जयन्ती शाखा के प्रकट होने का उल्लेख उपलब्ध होता है।
कल्प स्थविरावली में आर्य वज्र के स्वर्गगमन के पश्चात् स्थविर प्रार्य रथ को गरणाचार्य नियुक्त किया जाना और उनसे प्रचलित हुई प्राचार्य-परम्परा को प्रमुख परम्परा बताया गया है। कल्प स्थविरावली के एतद्विषयक पहले सूत्र ' (क) नाऊण रक्सियजो, मइमेहाधारणासमग्गंपि ।
किच्छेणं घरमाणं, सुपण्णवं पूसमित्त पि ॥ भइसयकमोवनोगो, मइमेहाधारणाइपरिहीये। नाऊण मेस्सपुरिसे, खेत्तं कालाणुस्वं च ॥ साणुग्गहोऽणुमोगे, वीसुंकासी य सुपविभागेण । सुहगहणाइनिमित्त, नए य सुनिगूहिय विभागे ॥ सविसयमसद्दहता, नयाण तम्मत्तयं च गेण्हता। मन्त्रताय विरोह, प्रपरिणामातिपरिणामा॥ गन्छेज मा हु मिच्छं, परिणामा य सुहुमादि बहुभेए। होला सत्ते घेत्तुं, न कालिए तो नयविभागो।।।
[आवश्यक मलय, पृ० ३६६ (१)] (स) पावश्यकणि (ग) श्रुत्वेत्यचिन्तयत् सूरिरीहग्मेषानिधियंदि।
विस्मरत्यागमं तहि कोज्यस्तं धारयिष्यति ॥२४० ततश्चतुर्विधः कार्योऽनुयोगोऽतः परं मया। ततोऽङ्गोपाङ्ग मूलाख्य ग्रंथच्छेदकृतागमः ॥२४१ अयं चरणकरणानुयोगः परिकीर्तितः ।
उत्तराध्ययनाबस्तु, सम्यग्धर्मकथापरः ॥२४२ (घ) सूर्यप्रज्ञप्तिमुस्यस्तु गणितस्य निगद्यते ।
इम्यस्य दृष्टिवादोऽनुयोगाश्चत्वार ईदृशः ॥२४३ [प्रभावक चरित्र, पृ० १७] (5) नाऊण गहणधारणहाणि चहा पिहीको जेण ।
प्रमोगो तं देविदवंदियं रक्खियं वन्दे ॥२१० . [ऋषिमंडलस्तोत्र] (ब) विशेषावश्यक भाष्य .रसक प्रज्जवहरस्स गोयमसगुत्तस्स इमे तिन्नि मन्तेवासी......."होत्था । थेरे प्रज्ज पारसेणे, घेरे मज्ज पउमे, थेरे मज्ज रहे ॥१४
. [कल्प स्थविरावली]
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