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प्रार्य पादलिप्त] दशपूर्वधर-काल : प्रार्य नागहस्ती
५५६ प्रबन्ध कोश तथा प्रभावक चरित्र के अतिरिक्त सभाष्य निशीथचूणि और वृहत्कल्प भाष्य में भी अनेक स्थलों पर प्राचार्य पादलिप्त के समय में हुए मुरुण्ड राजा के उल्लेख उपलब्ध होते हैं।
मुरुण्डराज को बहिन द्वारा जैन श्रमणी धर्म को दीक्षा वृहत्कल्प भाष्य में मुरुण्डराज की बहिन के श्रमणी धर्म में दीक्षित होने का उल्लेख उपलब्ध होता है, जो इस प्रकार है :
एक बार मुरुण्डराज की विधवा बहिन ने उसके समक्ष प्रवजित होने की अभिलाषा प्रकट की। किस धर्म की अनुयायिनी साध्वी के पास उसे दीक्षित करवाया जाय और कौन सा धर्म वस्तुतः वास्तविक पात्मिक धर्म है - इस बात की परीक्षा लेने का मुरुण्ड ने निश्चय किया। उसने महावत को आदेश दिया कि वह हाथी पर बैठ कर राजप्रासाद के पास वाले मार्ग पर इधर-उधर घूमे और ज्यों ही किसी भी धर्म की साध्वी उसे दृष्टिगोचर हो, वह हाथी को उसकी ओर यह कहते हुए बढ़ाए-"तुम्हारे तन पर जो भी वस्त्र हैं, उन्हें दूर फेंक दो अन्यथा यह मदोन्मत्त हाथी तुम्हें कुचल डालेगा।"
हस्तिचालक ने मुरुण्डराज के आदेश का पालन किया । विभिन्न मतोंवाली साध्वियों की ओर उन्हें वस्त्र फेंक देने की चेतावनी देते हुए महावत जब-जब हाथी को बढ़ाता तो वे तत्काल सब वस्त्र दूर फेंक कर नग्न हो जातीं। मुरुण्डराज अपने प्रासाद के गवाक्ष से इस प्रकार के दृश्य देखता रहता। अंततोगत्वा एक दिन एक जैन साध्वी को उस पथ पर यतनापूर्वक जाती हुई देख कर महावत ने उसे सब वस्त्र फेंक देने की चेतावनी देते हुए उसकी मोर हाथो को वेग से बढ़ाया।
हाथी को तीव्र गति से अपनी ओर बढ़ते हुए देख कर भी साध्वी ने धैर्य नहीं छोड़ा। उसने सबसे पहले हाथी की प्रोर अपनी मुखवस्त्रिका गिरा दी।' हाथी थोड़ी देर रुका, उसने सूंड से मुखवस्त्रिका को पकड़ कर देखा और फिर उसे एक ओर फेंक वह साध्वी की ओर बढ़ा । साध्वी ने उसी धैर्य के साथ अब की वार अपना रजोहरण हाथी की मोर डाला। हाथी रजोहरण को संड से पकड़ कर थोड़ी देर तक हवा में फहराता रहा और पुनः साध्वी की ओर बढ़ा। प्रार्या बड़े धैर्य के साथ अपने अन्यान्य बाह्य उपकरणों को एक-एक करके हाथी की ओर डालती रही। हाथी प्रत्येक बार रुक कर साध्वी द्वारा अपनी ओर डाले गये उपकरणों को इधर-उधर कर देखता और साध्वी की ओर बढ़ता। अंत में साध्वी के पास. लज्जा ढांकने का केवल एक ही वस्त्र बचा रह गया। महावत बार-बार तीव्र स्वर में साध्वी को वस्त्र फेंकने के लिए कहता रहा पर वह नटी की तरह कभी हाथी के इस ओर तो कभी उस भोर होकर अपना बचाव करने लगी। राजपथ पर दर्शकों की भारी भीड़ एकत्रित हो गई। साध्वी के अपूर्व साहस और प्रत्युत्पन्नमति से ' तीए पढ़मं मुहपोत्तिया मुक्का, ततो निसिबा। [वृहत्कल्प भा., भा० ४, पृ० ११२३]
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