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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [छठा निन्हव रोहगुप्त की प्ररूपणा की है। वस्तुतः राशियां दो ही हैं। जीवराशि और अजीव राशि । अब भी समय है, तुम तत्काल राजसभा में जाकर सत्यव्रत की रक्षा के लिये स्पष्टीकरण के साथ वास्तविक स्थिति रख दो।"
: गुरु की आज्ञा को अनसुनी कर रोहगुप्त राजसभा में जाने के लिये उद्यत नहीं हुआ। वह मौन धारण किये अपने स्थान पर बैठा रहा। जब प्राचार्य श्रीगुप्त ने राजसभा में जाने के लिये उसे बार बार बल दिया तो वह उनसे वाद करने को उद्यत हो गया। उसने अपनी बात को सही प्रमाणित करने का प्रयास करते हुए कहा - "मैंने तीन राशियों की बात कह दी तो इसमें मुझे कौनसा दोष लग गया? राशियां तीन हैं ही।"
रोहगुप्त को अपने साथ वाद करते देख प्राचार्य श्रीगुप्त ने राजकुल में जाकर कहा - "राजन् ! मेरे शिष्य रोहगुप्त ने जो आपकी राजसभा में तीन राशियों की प्ररूपणा की है, वह वास्तव में सिद्धान्तविरुद्ध है। सिद्धान्त में वस्तुतः दो ही राशियां मानी गई हैं। आप हम दोनों के बीच होने वाले वाद-प्रतिवाद को सुनकर सत्य का निर्णय करें।
राजा द्वारा स्वीकृति प्रदान किये जाने के पश्चात् गुरू शिष्य के बीच वादविवाद प्रारम्भ हुआ और निरन्तर ६ मास तक चलता रहा । अन्त में राजा बलश्री ने प्राचार्यश्री से निवेदन किया- "भगवन् ! राज्यकार्य में बड़ा विक्षेप हो रहा है । अतः वाद को अब शीघ्र समाप्त करने की कृपा करें।"
बलश्री को आश्वस्त करते हुए प्राचार्य श्रीगुप्त ने कहा- "राजन् ! कल वाद-विवाद समाप्त हो जायगा।"
दूसरे दिन प्राचार्य श्रीगुप्त ने ६ महिनों से चले पा रहे शास्त्रार्थ को निर्णायक स्थिति में लाने का उपक्रम करते हुए राजसभा के समक्ष राजा से कहा"राजन् ! कुत्रिकापण में संसार भर के सब द्रव्य (पदार्थ) उपलब्ध होते हैं। आप वहां से जीव, अजीव और नोजीव इन तीनों द्रव्यों को मंगवाइये।"
राजा द्वारा तत्काल राज्याधिकारियों को कृत्रिकापण पर भेजा गया। वहां जीव और अजीव की तो उपलब्धि हो गई पर नोजीव मांगने पर कोई वस्तु नहीं मिली।
राजा ने अपना निर्णय सुनाते हए कहा - "कुत्रिकापण पर संसार के सभी द्रव्य मिल जाते हैं। वहां पर जीव और अजीव मिल गये, नोजीव नामक द्रव्य नहीं मिला। इससे यह प्रमाणित होता है कि संसार में जीव और अजीव ये दो ही राशियां हैं. नोजीव नाम की तीसरी कोई राशि नहीं। ऐसी स्थिति में प्राचार्य श्रीगुप्त को वाद में विजयी घोषित किया जाता है और उनके दुविनीत शिष्य रोहगुप्त को पराजित ।" राजा ने रोहगुप्त को अपने देश से निर्वासित भी कर दिया।' 'वाए पराजिमो सो, निव्यिसमो कारिमो नरिदेण ।। घोसावियं च नयरे, जयइ जियो बदमाणोत्ति ।।२५०६. विशेषावश्यक भाष्य
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