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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [प्रायं वज्र की प्रतिभा (१) वज्रसेन सूरि के शिष्य नागहस्ती से वीर नि० सं० ६०६ में नाइला शाखा का प्रादुर्भाव हुआ। कालान्तर में इस नाइला शाखा से नाइल, चन्द, निव्वई और विज्जाहर नामक चार कुल प्रशाखा के रूप में उद्भूत हुए। इन चारों कुलों की गच्छ के रूप में प्रसिद्धि हुई।
(२) प्राचार्य पद्म श्री से पोमिली शाखा का उद्भव हुआ। (३) ऋषि जयन्त से जयन्ती शाखा प्रचलित हुई।
(४) तापस नामक मुनि से तापसी शाखा प्रकट हुई । ये तापस श्री शान्ति श्रेणिक नामक महात्मा के शिष्य थे।'
अार्य वज्रस्वामी के बहुमुखी अनुपम महान् व्यक्तित्व का एक कवि ने निम्नलिखित शब्दों में चित्रण किया है :
कि रूपं किमुपांगसूत्रपठनं शिष्येषु किं वाचना।
कि प्रज्ञा किमु निप्पृहत्वमथ किं सौभाग्यभंग्यादिकं ।। किं वा संघ समुन्नतिः सुरनतिः किं तस्य किं वर्णनं ।
वज्रस्वामिविभोः प्रभावजलधेरेकैकमप्यद्भुतम् ।। गणाचार्य - आर्य सुहस्ती की परम्परा के गणाचार्य भी उपरोक्त अवधि में आर्य वज्र ही रहे।
दिगम्बर परम्परा में वनमुनि श्वेताम्बर परम्परा की तरह दिगम्बर परम्परा के 'उपासकाध्ययन' और हरिषेणकृत वृहत्कथाकोश में भी प्रभावना अंग का वर्णन करते हुए वज्रमुनि का उल्लेख किया गया है। दोनों परम्पराओं में वज्रमुनि को विविध विद्याओं का ज्ञाता और धर्म का प्रभावक माना गया है। दोनों परम्परामों में एतद्विषयक जो अन्तर अथवा समानता है वह संक्षेप में इस प्रकार है :
श्वेताम्बर परम्परा में आर्य वज्र के पिता का नाम धनगिरि और माता का नाम सुनन्दा बताया गया है जबकि दिगम्बर साहित्य में आर्य वन को पुरोहित सोमदेव और यज्ञदत्ता का पुत्र बताया है। दिगम्बर परम्परा के उपरोक्त दोनों ' (क), यज्ञदत्ताभट्टिनीभर्ता सोमदत्तो नाम पुरोहितोऽभूत् ।
[उपासकाध्ययन (भारतीय ज्ञानपीठ), पृ. ६४] (ख) मुंजानाया रति तेन सोमदत्तेन भोगिना। बभूव सहसा गर्भो यज्ञिकायाः सुतेजसः ।।१६।।
- [वृहत्कथाकोश, भारतीय विद्याभवनः, पृ० २३) २ अज्ज नाइली शाखा एवं जयन्ती शाखा के प्रवर्तकों के सम्बन्ध में कल्प स्थविरावली की संक्षिप्त तथा वृहत्वाचनामों में मत भिन्न्य दृष्टिगोचर होता है। जहां संक्षिप्त वाचना में प्रार्य नाइल से नाइली शाखा का तथा प्राय जयन्त से जयन्ती शाखा का प्रादुर्भाव बताया हैं वहां विस्तृत वाचना में प्रार्य वज्रसेन से नाइली शाखा का और मार्य रथ से जयन्ती शाखा का उद्गम बताया है । यह विचारणीय है।
-सम्पादक
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