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पुष्यमित्र शुंग] दशपूर्वधर-काल : आर्य बलिस्सह
४६३ वाचनाचार्य आर्य बलिस्सह के समसामयिक युगप्रधानाचार्य आर्य गुणसुन्दर का युगप्रधानाचार्यकाल वीर नि० सं० २६१ से ३३५ तक और आर्य सुहस्ती की परम्परा के गणाचार्य प्रार्य सुस्थित-सुप्रतिबुद्ध का गणाचार्यकाल वीर नि० सं० २६१ से ३३६ तक रहा, यह ऊपर बताया जा चुका है । आर्य बलिस्सह के वाचनाचार्यकाल में ही इन दोनों प्राचार्यों के अधिकांश आचार्यकाल का समावेश हो जाता है अतः इनके समय के राजवंशों के सम्बन्ध में पृथकतः उल्लेख करने की कोई आवश्यकता ही नहीं रह जाती। इनके आचार्यकाल के सम्बन्ध में केवल इतना ही कहना अवशिष्ट रह जाता है कि आर्य बलिस्सह एवं कलिंगाधिपति खारवेल के दिवंगत होने के पश्चात् इन दोनों प्राचार्यों के प्राचार्यकाल में मगध के जैनधर्मावलम्बियों को जैनों के प्रबल विरोधी पुष्यमित्र के राज्यकाल में अनेकों बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
१२. प्रार्य स्वाति आचार्य बलिस्सह के पश्चात् आर्य स्वाति प्राचार्य हुए। नंदीसूत्र स्थविरावली के अनुसार प्रार्य स्वाति का जन्म हारीत गोत्रीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था ।' आर्य बलिस्सह के त्यागपूर्ण उपदेश सुन कर आपको संसार से विरक्ति हो गई और आपने तरुण वय में संसार के सब प्रपंचों का परित्याग कर प्राचार्य श्री के चरणों में श्रमण-दीक्षा ग्रहण की। दीक्षित होने के पश्चात् आर्य स्वाति ने गुरु की सेवा में रहते हुए बड़ी निष्ठा एवं लगन के साथ क्रमशः एकादशांगी और १० पूर्यों का सम्यकरूपेण अध्ययन किया। विशेष परिचय के अभाव में आप द्वारा किये गये शासन-सेवा के कार्यों का परिचय नहीं दिया जा सकता।
तपागच्छ पट्टावली में यह संभावना अभिव्यक्त की गई है कि इन्हीं आर्य स्वाति के द्वारा तत्वार्थसूत्र आदि ग्रन्थों की रचना की गई। परन्तु इतिहासज्ञ विद्वानों का इस विषय में मतभेद है।
इतिहास लेखकों ने प्रार्य स्वाति से वाचक उमास्वाति को भिन्न माना है। उनके अनुसार उमास्वाति उच्चनागर शाखा के विद्वान् प्राचार्य माने गये हैं। इसके अतिरिक्त उमास्वाति का काल विक्रमीय तीसरी शताब्दी माना गया है। संभव है नामसाम्य के कारण पट्टावलीकार ने दोनों को एक मान लिया हो।
वीर नि० सं० ३३६ (३३५) में आप स्वर्गस्थ हुए।
हिमवन्त स्थविरावली प्रादि प्राचीन गिने जाने वाले ग्रन्थों में इन पार्य स्वाति के द्वारा तत्वार्थसूत्र के प्रणयन का उल्लेख नितान्त निराधार तो नहीं माना जा सकता। ऐसा अनुमान किया जाता है कि संभवतः इन आर्य स्वाति के ' हारियगोतं साइं च......
[नंदीसूत्र] २ बलिस्सहस्य शिष्यः स्वातिः तत्वार्थादयो ग्रन्थास्तु तत्कृता एव सभाव्यन्ते ।
[पट्टावली समुच्चय, पृ० ४६]
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