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विक्रमादित्य] दशपूर्वधर-काल : प्रार्य मंगू
५४६ अरब ईश्वर को भूल कर भोग विलास में लिप्त था। छल-कपट को ही लोगों ने सब से बड़ा गुरण मान रखा था। हमारे तमाम देश (अरब) में अविद्या ने अंधकार फैला रक्खा था। जैसे बकरी का बच्चा भेड़िये के पंजे में फंस कर छटपटाता है, छूट नहीं सकता, ऐसे ही हमारी जाति मूर्खता के पंजे में फंसी हुई थी। संसार के व्यवहार को अविद्या के कारण हम भूल चुके थे, सारे देश में अमावस्या की रात्रि की तरह अन्धकार फैला हुमा था परन्तु अब जो विद्या का प्रातःकालीन सुखदाई प्रकाश दिखाई देता है, वह कैसे हमा? यह उसी धर्मात्मा राजा विक्रम की कृपा है, जिसने हम विदेशियों को भी अपनी दया दृष्टि से वंचित नहीं किया और पवित्र धर्म का सन्देश दे कर अपनी जाति के विद्वानों को यहां भेजा, जो हमारे देश में सूर्य की तरह चमकते थे। जिन महापुरुषों की कृपा से हमने भुलाए हए ईश्वर
और उसके पवित्र ज्ञान को जाना और सत्पथगामी हुए, वे लोग राजा विक्रम की प्राज्ञा से हमारे देश में विद्या और धर्म के प्रचार के लिये प्राए थे।"'
१३. शान्टियर', रॅप्सन', फ्रेंकलिन एजर्टन प्रादि पाश्चात्य विद्वानों ने कालकाचार्य कथा में उल्लिखित शकों द्वारा गर्दभिल्ल की पराजय और तदनन्तर विक्रमादित्य द्वारा शकों को परास्त कर उज्जयिनी पर अधिकार करने की घटनामों को ऐतिहासिक मानते हुए विक्रमादित्य द्वारा ईसा पूर्व ५८-५७ में विक्रम सम्वत् प्रचलित किये जाने की मान्यता अभिव्यक्त की है।
उपरिलिखित प्रमाणों से न केवल विक्रमादित्य का अस्तित्व ही सिद्ध होता है.मपितु यह भी प्रमाणित होता है कि विक्रमादित्य वस्तुतः बड़ा साहसी, परोपकारी और अरब जैसे सुदूर देशों में भी प्रसिद्धि प्राप्त राजा था। उसने अनेक वर्षों तक न्यायपूर्वक राज्य करते हुए केवल भारत ही नहीं अपितु भारत के पड़ोसी एवं सुदूरवर्ती राष्ट्रों से भी अविद्या और गरीबी को मिटाने तथा मानवसमाज को सुसभ्य एवं सुखी बनाने के लिए अनेक प्रयास किये। विक्रमादित्य का व्यक्तित्व वस्तुतः विराट था। . विक्रय स्मृति प्रन्य (सिन्धिया प्रोरिएन्टल इन्स्टीट्यूट, ग्वालियर) में प्रकाशित श्री महेश
प्रसाद, मौलवी प्रालिम फाजिल के लेख से उद्धृत । Oply one legend, the Kalkacharya-Kathapaka 'the story of the teacher Kalaka' tells us about some events which are supposed to have taken place in Ujjain and other parts of Western India during the first part of the first century B. C. or immediately before the foundation of the Vikrama era in 38 B. C. This legend is perhaps pot totally devoid of all historical interest.
(Cambridge History of India, Vol. 1. P. 1671 The memory of an episode in the history of Ujjain..... may possibiy be preserved in the Jain story of Kalka............Both the tyrant Gardabhilla whose misdeeds were responsible for the introduction of these evengers, and his son Vikramaditya, who afterwards drove the Sakas of the realm, according to the story, may perhaps be historical characters.
[बही, pp.532-33] "It seems on the whole at least possible, and perhaps probable, that there really was a king named Vikramaditya who reigned in Malva and founded the era of 58-57 B.C.
(Op. W. LXVIJ
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