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विक्रमादित्य ]
दशपूर्वघर - काल : श्रार्य मंगू
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५. स्कन्द पुराण में भी विक्रमादित्य का उल्लेख उपलब्ध होता है, जिसमें बताया गया है कि कलियुग के ३००० वर्ष बीतने पर ( ईसा से १०० वर्ष पूर्व ) विक्रमादित्य का जन्म होगा ।
६. गुरणाढ्य की 'वृहत्कथा' के आधार पर क्षेमेन्द्र द्वारा रचित 'वृहत्कथा मंजरी' में भी निम्नलिखित रूप में विक्रमादित्य का उल्लेख किया गया है :• ततो विजित्य समरे कलिंग नृपति विभुः । राजा श्री विक्रमादित्यः स्त्रीप्रायः विजयश्रियम् ॥ अथ श्री विक्रमादित्यो, हेलया निर्जिताखिलः । म्लेच्छान् काम्बोज यवनान् चीनान् हुरगान् सबर्बरान् ॥ तुषारान् पारसीकांश्च त्यक्ताचारान् विशृंखलान् ! हत्वा भ्रूभंगमात्रेरण, भुवो भारमवारयत् ।। तं प्राह भगवान् विष्णुस्त्वं ममांशो महीपते । 'जातोऽसि विक्रमादित्य पुरा म्लेच्छ शकांतकः ।। यह यहां उल्लेखनीय है कि कथासरित्सागर के विद्वान् सम्पादक श्री. दुर्गाप्रसाद शास्त्री ने गुणाढ्य का समय ई० सन् ७८ के आसपास का माना है । ७: श्रीमद्भागवत् में भी गर्दभिन् राजानों के होने का संक्षेप में उल्लेख है, जो इस प्रकार है :
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सप्ताभीरा श्रावभृत्या, दशगर्दभिनो नृपाः ।
कंका षोड़श भूपाला, भविष्यन्त्यति लोलुपाः ||२६ [ श्रीमद्भागवत, स्कंध १२, अ० १]
८. पहली शताब्दी ई० पूर्व की कुछ मालव मुद्राएं मालव प्रान्त में प्राप्त हुई हैं, उनमें से कतिपय मुद्राओं पर एक ओर सूर्य का चिन्ह तथा दूसरी प्रोर 'मालवानां जय:' और 'मालवगरणस्य जयः' की छाप लगी हुई है । ये मुद्राएं ईसा से ५७ वर्ष पूर्व विक्रमादित्य द्वारा शकों पर मालव जाति के योद्धाओं की सहायता से प्राप्त की गई बड़ी विजय की साक्षी देती हैं। इन मुद्राओं पर एक और अंकित सूर्य का चिन्ह विक्रमादित्य शब्द के संक्षिप्त रूप " श्रादित्य" का द्योतक है ।
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६. महाकवि बारण भट्ट के पूर्व कालिक कवि सुबन्धु ने 'वासवदत्ता' के प्रास्ताविक पद्य १० में विक्रमादित्य का निम्नलिखित रूप में उल्लेख किया है :सारसवन्ता विहता, नवका विलसन्ति चरति नो कंकः । सरसीव कीर्ति शेषं, गतवति भुवि विक्रमादित्ये ॥
१०. विक्रम संवत् के प्रचलन से पहले चेटक, श्रेणिक, कूरिणक, चण्ड प्रद्योत, नन्द, चन्द्रगुप्त, प्रशोक प्रादि महाप्रतापी राजाओं में से किसी ने विक्रमादित्य के विरुद को धारण नहीं किया। ईसा से ५७ वर्ष पूर्व विक्रम संवत् के प्रवर्तक विक्रमादित्य से लगभग दो तीन शताब्दी पश्चात् सात वाहन सम्राट् गौतमीपुत्र 'सातकरिण मे भौर लगभग चार सौ - पांच सौ वर्ष पश्चात् गुप्त सम्राट् चन्द्रगुप्त
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