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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [विक्रमादित्य ने 'विक्रमादित्य' का विरुद धारण किया। यह भी इस बात का पुष्ट प्रमाण है कि ईसा से ५७ वर्ष पूर्व विक्रमादित्य नामक राजा हुया और उसने विक्रम संवत् चलाया। उसे प्रादर्श मान कर सातकरिण और गुप्त सम्राट चंद्रगुप्त ने भी अपने अपने नाम के साथ 'विक्रमादित्य' का विरुद लगाया।
११. विक्रमादित्य की राजसभा में ६ रत्न थे - इस प्रकार का उल्लेख अनेक ग्रन्थों में उपलब्ध होता है। 'ज्योतिविदाभरण' ग्रन्थ में विक्रमादित्य की राज्यसभा के ६ रत्नों के नामों का उल्लेख है, जो इस प्रकार है :
धन्वन्तरिक्षपणकाऽमरसिंह शंकु,
वैतालभट्रघटखपरकालिदासाः । ख्यातो वराहमिहिरो नृपते सभायां,
रत्नानि वै वररुचिर्नव विक्रमस्य ।। इन ६ रत्नों के समय को निर्धारित करने के सम्बन्ध में विद्वान् प्रयत्नशील हैं । इनमें से कतिपय रत्नों का समय ईसा पूर्व पहली शताब्दी ही ठहरता है। इससे भी इस तथ्य की पुष्टि होती है कि ईसा से ५७ वर्ष पूर्व विक्रमादित्य राजा हुआ और उसने विक्रम संवत् चलाया।
१२. इन सब के अतिरिक्त विक्रमादित्य के अस्तित्व को सिद्ध करने वाला एक ऐसा प्रमाण है जो पूर्णतः निष्पक्ष और विदेशी साक्ष्य पर आधारित है। वह साक्षी है अरब देश के साहित्य की जो इस प्रकार है :
"हजरत मोहम्मद साहब से १६५ वर्ष पूर्व 'जहम बिनतोई' नामक अरब का एक कवि हो गया है, जो प्रोकाज- मक्का में प्रतिवर्ष भरे जाने वाले अरव के उस समय के सबसे बड़े मेले के कवि सम्मेलन में तीन वर्ष तक लगातार सर्वप्रथम प्राता रहा । मक्का के इस मेले में हजरत मोहम्मद साहब से लगभग २००० वर्ष पूर्व तक के कवि सम्मेलनों में प्रथम आने वाले कवियों की कविताओं को सोने के पत्रों पर अंकित कर मक्का के विशाल मंदिर में टांगा जाता पा रहा था। प्ररव के उस समय के महाकवि 'जहम बिनतोई की, उन तीन कविताओं में से एक कविता इस प्रकार है :इत्रश्शफाई सनतुल बिकरमतुन, फहलमिन करीमुन यर्तफीहा वयोवस्सरू । बिहिल्लाहायसमीमिन एला मोतकब्बेनरन,बिहिल्लाहायूही कैद मिन होवा यफखरू। फज्जल-प्रासारि नहनो मोसारिम बेजेहलीन, युरोदुन बिप्राबिन कजनबिनयखतरू । यह सबदुन्या कनातेफ़ नातेफी बिजेहलीन, प्रतदरी बिलला मसीरतुन फ़खेफ़ तसबहू । कउन्नी एजा माजकरलहदा वलहदा, प्रशमीमान, बुरुकन क़द तोलुहो वतस्तरू । बिहिलाहा यकजी बैनना वले कुल्ले अमरेना, फहेया जाऊना बिल प्रमरे विकरमतुन ।
. . [सेमरूल-प्रोकूल, पृ० ३१५] वे लोग धन्य हैं, जो राजा विक्रम के राज्यकाल में उत्पन्न हुए, वो (राणा विक्रम) बड़ा दानी, धर्मात्मा पौर प्रजापालक था। परन्तु ऐसे समय हमारा
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