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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [प्रा० श्याम रा० धा० स्थिति
४. वसुमित्र
१० वर्ष ५. भद ६. पुलिन्दक ७. घोष ८. वज्रमित्र 8. भागवत
१०. देवभूति शुंगवंशी पुष्यमित्र और अग्निमित्र के सिक्के उपलब्ध होते हैं। मालविकाग्नि मित्र में काली सिन्धु के तट पर राजकुमार वसुमित्र शुंग का यवनों के साथ युद्ध होने का उल्लेख भी उपलब्ध होता है। अनुमान किया जाता है कि वसुमित्र का यह युद्ध डिमिट्रियस के जामाता मीनाण्डर के साथ हुआ।
यह पहले बताया जा चुका है कि डिमिट्रियस के प्रतिद्वन्द्वी यूक्रेडाइटीज ने डिमिट्रियस की अनुपस्थिति में उसके बैक्ट्रिया (बाल्हीक) के राज्य पर अधिकार कर लिया था। इस कारण डिमिट्रियस को अपनी सेनाओं के साथ भारत छोड़कर स्वदेश लौटना पड़ा। डिमिट्रियस बाल्हीक पहुंचा, उससे पहले ही यूक्रेटाइडीज . बाल्हीक में अपनी स्थिति सुदृढ़ कर चुका था अतः डिमिट्रियस को अपने बाल्हीक
के राज्य से हाथ धोना पड़ा और वह केवल गान्धार और उसके आसपास के राज्य का ही अंधिपति रह गया। वह गृहयुद्ध में मारा गया ।
डिमिट्रियस की मृत्यु के पश्चात् मीनाण्डर और यूक्रेटाइडीज के वंशजों ने लगभग एक शताब्दी से भी अधिक वर्षों तक पंजाब पर शासन किया। मीनाण्डर इन सभी यवन शासकों में प्रतापी माना गया है ।
. प्रसिद्ध बौद्ध ग्रन्थ 'मिलिन्द पह्नो' की रचना ही मिलिन्द नामक राजा द्वारा बौद्ध भिक्षु नागसेन से किये गए प्रश्नों के आधार पर की गई है। इसमें बताया गया है कि नागसेन से अपने प्रश्नों का पूर्ण सन्तोषप्रद उत्तर सुनकर राजा मिलिन्द बौद्धधर्मावलम्बी बन गया। इतिहासविदों का अभिमत है कि 'मिलिन्द पह्नों' का प्रमुख पात्र मिलिन्द वस्तुतः यवन शासक मीनाण्डर ही था। भारतीय राजवंशों की नामावलियों के पर्यवेक्षण से उस समय में मिलिन्द नामक किसी भारतीय राजा का नाम कहीं दृष्टिगोचर नहीं होता।
शंगवंशी राजाओं के राज्यकाल पर ध्यानपूर्वक दृष्टिपात करने से ऐसा प्रतीत होता है कि इस वंश के 8वें राजा भागवत के अतिरिक्त अन्य किसी राजा का शासन सुदृढ़ एवं शान्तिपूर्ण नहीं रहा। पांचवें से आठवें- इन चार शुंगवंशी राजाओं का राज्यकाल तो एक प्रकार से नगण्य ही रहा।
शंगवंश के राज्यकाल की घटनाओं के विहंगमावलोकन से यह स्पष्टतः प्रकट होता है कि इस वंश के शासनकाल में पारस्परिक धार्मिक सद्भावना का केवल प्रभाव ही नहीं रहा अपितु धार्मिक असहिष्णुता अपनी चरम सीमा तक
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