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हि० स्थ० और विक्रमादित्य ] दशपूर्वघर - काल : श्रार्य मंगू
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जहां एक ओर विक्रमादित्य का संवत् आज से २०३० वर्ष पहले से चला ग्रा रहा है, संस्कृत, प्राकृत एवं विभिन्न भारतीय भाषाओं में विक्रम का जीवनपरिचय देने वाले १०० से ऊपर ग्रंथ, हजारों आख्यान और लोककथाएं भारतीय साहित्य में उपलब्ध हैं तथा विक्रम के अस्तित्व को प्रमाणित करने वाले सैकड़ों शिलालेख, दानपत्र आदि विद्यमान हैं, वहां दूसरी ओर यह देखकर बड़ा आश्चर्य और दुःख होता है कि भारतीय जनजीवन में शताब्दियों से पूर्णतः रमे हुए, भारतीयों के हृदयसम्राट् महान् प्रतापी राजा विक्रमादित्य के अस्तित्व के विषय ' में भी कतिपय पाश्चात्य एवं भारतीय विद्वान् सन्देह प्रकट करते हैं ।
'ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी में इस प्रकार का महान् प्रतापी विक्रमादित्य नामक राजा हुआ अथवा नहीं।' अपनी इस शंका की पुष्टि में मुख्य रूप से उन विद्वानों द्वारा यही कहा जाता है कि ईसा से ५७ वर्ष पूर्व यदि विक्रमादित्य नाम का महान् प्रतापी राजा हुआ होता और उसने अपने नाम से संवत् प्रचलित किया होता तो उसके नाम के सिक्के अवश्य उपलब्ध होते । इसके साथ ही साथ ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी से ले कर ईसा को दवीं शताब्दी के बीच के किसी समय के कम से कम एक दो शिलालेख तो विक्रम संवत् के उल्लेख के साथ मिलते | पर इस अवधि के बीच का एक भी शिलालेख इस प्रकार का नहीं मिलता जिस पर स्पष्ट शब्दों में विक्रम संवत् अंकित हो । विक्रम संवत् के उल्लेख से युक्त सबसे पहला शिलालेख चण्डमहासेन नामक चौहान राजा का धोलपुर से मिला है जिस पर विक्रम संवत् ८६८ खुदा हुआ है । इस प्रकार यह लेख ई० सन् ८४१ का है । इससे पहले के जितने भी अभिलेख विक्रमादित्य के संवत् से सम्बन्धित बताये जाते हैं, उन पर विक्रम संवत् नहीं अपितु निम्नलिखित पद खुदे हुए हैं :
(१) श्रीमालवगरणाम्नाते प्रशस्ते कृतसंज्ञिते ।
(२) कृतेषु चतुषु वर्षशतेष्वेकाशीत्युत्तरेष्वस्यां मालवपूर्व्वस्यां । ( नगरी का लेख )
(३) मालवानां गरणस्थित्या याते शतचतुष्टये । त्रिनवत्यधिकेऽब्दानामृतौ सेव्यघनस्तने ।।
( मन्दसोर का कुमारगुप्त ( १ ) का शिलालेख )
जो विद्वान् इस प्रकार की शंका उठाते हैं, उन्हें सर्वप्रथम यह विचार करना होगा कि विक्रम पूर्व प्रथम शताब्दी और उसके पश्चात् की भी कतिपय शताब्दियों में देश की राजनैतिक स्थिति कितनी अस्थिर, डांवाडोल और विदेशी प्राक्रमरणों, गृह कलहों के कारण उथलपुथल से भरी होगी। इस प्रकार के संक्रान्तिकाल में यह बहुत कुछ संभव है कि वह ऐतिहासिक सामग्री बाद में प्राये हुए शकों द्वारा नष्ट भ्रष्ट कर दी गई हो अथवा वह सामग्री इधर-उधर बिखर गई हो ।
वह कितना भीषण संक्रान्तिकाल था, इसका अनुमान मालव गण द्वारा अपनी जन्मभूमि झेलम के तट ( पंजाब ) का परित्याग किया जाकर प्रथमतः
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