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मंगू के स० के राजवंश] दशपूर्वधर-काल : प्रार्य मंगू
शुभशीलगणी ने विक्रमादित्य के माता-पिता, भाई आदि का उपरोक्त परिचय देने के पश्चात् “यां चिन्तयामि सततं मयि सा विरक्ता" यह लोकविश्रुत श्लोक देते हुए अमरफल वाला वृत्तान्त दिया है, जिसमें एक ब्राह्मण द्वारा अमरफल प्राप्त करने, उसे भर्तृहरि राजा को देने, राजा द्वारा अपनी रानी को दिये जाने, रानी द्वारा कुबड़े अश्ववाहक को, प्रश्ववाहक द्वारा गरिएका को और गरिएका द्वारा पुनः राजा भर्तहरि को उस फल के दिये जाने का उल्लेख है। इसमें बताया गया है कि वस्तुस्थिति से अवगत होते ही भर्तहरि संन्यस्त हो वन में चला गया और उसके पश्चात् विक्रमादित्य उज्जयिनी के राज्य-सिंहासन पर आसीन हुमा ।
अन्यान्य विद्वानों द्वारा रचित विक्रमचरित्रों में कतिपय अंशों में इससे मिलता-जुलता विक्रम का प्रारम्भिक परिचय दिया हमा है। इनमें से किसी भी ग्रंथ में विक्रमादित्य के वंश के सम्बन्ध में प्रकाश नहीं डाला गया है।
हिमवन्त स्थविराबलोकार और विक्रमादित्य प्राकृत और संस्कृत भाषा की हस्तलिखित पुस्तक “हिमवन्तस्थविरावली" में विक्रमादित्य को मौर्यवंशी बताया गया है। हिमवन्त स्थविरावली का एतद्विषयक उल्लेख निम्नलिखित रूप में है :. 'अवन्ती नगरी में सम्प्रति के निष्पुत्र निधन के अनन्तर अशोक के पौत्र तथा तिष्यगुप्त के पुत्र बलमित्र एवं भानुमित्र नामक राजकुमार अवन्ती के राज्यसिंहासन पर प्रारूढ़ हुए। वे दोनों भाई जैनधर्म के परमोपासक थे। उनके निधन के पश्चात्. बलमित्र का पुत्र नभोवाहन प्रवन्ती के राज्य का स्वामी बना। नभोवाहन भी जैनधर्म का अनुयायी था। उसकी मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र गर्दभिल्ल राजा बना । गर्दभिल्ल ने कालकाचार्य द्वितीय की बहिन साध्वी सरस्वती का बलात् अपहरण करवा कर उसे अपने अन्तःपुर में बन्द कर दिया । सब प्रकार से समझाने-बुझाने पर भी गर्दभिल्ल ने त्याग-पष की पथिका साध्वी सरस्वती को मुक्त नहीं किया। अन्ततोगत्वा कालकाचार्य ने अन्य और कोई चारा न देख भगुकच्छ के अधिपति अपने भागिनेय बलमित्र-भानुमित्र' एवं सिन्धप्रदेश के शक राजामों की सम्मिलित सेना द्वारा उज्जयिनी पर माक्रमण करवा दिया। भीषण युद्ध में गर्दभिल्ल मारा गया और शकों ने उज्जयिनी पर अधिकार कर लिया। प्रार्य कालक ने अपनो बहिन साध्वी सरस्वती को पुनः संयम धर्म में स्थापित किया और वे स्वयं भी समुचित प्रायश्चित्त कर संयमसाधना में निरत हुए।
ये दोनों बन्दु पार्यकालक के मागिनेव गुबन्ध राज्य के अधिपति बलमित्र मानुमित्र से मित्र हैं। इनका सत्ताकाल वीर वि.सं. ३५३ से ४१३ तक का है जबकि महाप के बनमिन-बानुमित्र का समय बीर निवारण से ४५४ वर्ष पश्चात् का है।
[सम्पादक
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