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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [हि स्थ० और विक० विदेशी शकों के अत्याचारों से संत्रस्त प्रजा का नेतृत्व कर विक्रमादित्य ने शकों को परास्त किया और ४ वर्ष पश्चात् ही पुनः अपने पैतृक राज्य पर अधिकार कर लिया।''
प्राचार्य मेरुतुग की 'विचारश्रेणी' तथा अनेक प्राचीन ग्रंथों में उल्लिखित राजवंशों के विवरणों के संदर्भ में विचार करने पर हिमवंत स्थविरावली में वरिणत उपरोक्त घटनाक्रम संगत और विश्वसनीय प्रतीत होता है। कहावली एवं परिशिष्ट पर्व में वीर निर्वाण के पश्चात् राजवंशों की कालगणना में पालक के राज्य के ६० वर्षों को सम्मिलित न किये जाने के कारण जो कालक्रम के पालेखन में त्रुटि रही है, तथा उसके परिणामस्वरूप कालगणनाविषयक एक नवीन मान्यता विगत अनेक शताब्दियों से प्रचलित रही है, उसका प्रभाव हिमवन्त स्थविरावली. कार पर भी पूरी तरह से पड़ा है। उपरिचित उद्धरण में हिमवन्त स्थविरावलीकार ने जो ऐतिहासिक घटनाओं का तिथिक्रम दिया है, उन सभी तिथियों में यह ६० वर्ष का अन्तर स्पष्टतः परिलक्षित होता हैं। जैन कालगणना विषयक उस दूसरी मान्यता के प्रभाव में हिमवन्तस्थविरावलीकार ने ६० वर्ष पश्चात् घटित होने वाली घटनाओं का तिथिक्रम ६० वर्ष पहले का दे दिया है। नन्दवंश के अन्त एवं मौर्य-शासन के प्रारम्भ होने के काल की चर्चा करते समय इस कालभेद के सम्बन्ध में पहले प्रमाण-पुरस्सर पूरा प्रकाश डाला जा चुका है। अतः यहां उसकी पुनरावृत्ति की आवश्यकता नहीं है।
सोमदेव रचित कथासरित्सागर में विक्रमादित्य के पिता का नाम महेन्द्रादित्य और माता का नाम सौम्यदर्शना दिया गया है। उसमें यह बताया गया है कि महेन्द्रादित्य ने पुत्र की कामना से शिव की उपासना की। शंकर के कृपाप्रासद से शंकर का माल्यवान नामक गण सौम्यदर्शना के गर्भ से उत्पन्न हुआ और महेंद्रादित्य ने उसका नाम विक्रमादित्य रखा।
सिंहासन बत्तीसी आदि अनेक ग्रंथों में भर्तहरि और विक्रमादित्य के जन्म के सम्बन्ध में बड़ा ही अद्भुत् उल्लेख उपलब्ध होता है। उससे सभी परिचित हैं प्रतः उसे यहां देने की आवश्यकता नहीं। पहावंती एयरम्मि संपइ णिवस्स णिपुत्तस्स सग्गगमणंतरमसोगणिवपुत्ततिस्सगुत्तस्स बलमित्तभाणुमित्तणामधिज्जे दुवे पुत्ते वीरानो दो सय चउणवई वासेसु विइक्कतेसु रजं पत्ते । ते णं दुन्नि वि भाया जिणधम्माराहगे वीरानो चउवनाहियतिसयवासेसु विइक्कतेसु सग्गं पत । तयणंतरं बलमित्तस्स पुत्तो रणभोवाहणो अवंती रज्जे ठिभो । से यि य रणं जिरणधम्मारणुगो वीरानो तिसयचउणवइ वासेसु विइक्कतेसु सग्गं पत्तो । तो तस्स पुत्तो गद्दहोविज्जोवेप्रो गहिल्लो णिवो भवंतीणयरे रज्ज पत्तो।।
............" तत्थ णं भीसणे जुज्झे जायमाणे गद्दहिल्लो णिवो कालं किच्चा णेरइयातिहिमो जायो ।......
तउ गद्दहिल्लरिणवपुतो विक्कमणामधिज्जो तं सामंतणामधिज्ज सगरायमाकम्म वीरानो दसाहियच उसयवासेसु विइक्कतेसु अवंती रगयरे र पत्तो । से वि य रणं विक्कमक्को रिणवो मईव परक्कमजुमो जिणधम्माराहगो परोपयारेगणिट्ठो भवंतीए गयरे रज्ज कुणमारणो लोग्गारणमईव पियो जानो। [हिपवन्तस्थविरावली, मप्रकाशित]
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