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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [भ्रम का निराकरण ... इससे यह निर्विवाद रूपेण सिद्ध होता है कि अहिंसा के महान सिद्धान्तों में शान्ति एवं सुव्यवस्था बनाये रखने के लिये अपराधियों तथा अातताइयों को समुचित दण्ड देने का पूरा प्रावधान युगादि से ही रखा गया है ।
___ यही नहीं संसार को सुशासन देने के लिये समय-समय पर हुए बारह चक्रवतियों ने विशाल वाहिनियों के साथ दिग्विजय की। उनमें शान्तिनाथ, कुंथुनाथ और अरनाथ ये तीन चक्रवर्ती क्रमशः सोलहवें,सत्रहवें और अठारहवें तीर्थंकर हुए हैं।
ऐसी स्थिति में यदि कोई विद्वान वास्तविकता की ओर से दृष्टि घुमाकर तथा इन ज्वलंत ऐतिहासिक तथ्यों को नजरन्दाज करके यह कहने की हठधर्मिता करते हैं कि अहिंसा के प्रचार-प्रसार के कारण राजतन्त्र अथवा राजालोग शिथिल एवं शक्तिहीन बने और देश फलतः विदेशी आक्रमरणों का शिकार बना, तो यह उनका केवल साम्प्रदायिक व्यामोहमात्र है - उनके इस कथन में कहीं कोई किंचित्मात्र भी तथ्य नहीं है।
वास्तविकता यह है कि अहिंसा के परमोपासक राजाओं का जब तक देश पर आधिपत्य रहा, तब तक देश सुसंपन्न सशक्त, स्वर्गोपम सौख्यशाली और समुन्नत रहा । अहिंसा के परमोपासक मौर्य सम्राट अशोक को विदेशियों और संसार के प्रायः सभी विचारकों ने संसार का सर्वश्रेष्ठ शासक एवं उसके शासन को विश्व का सर्वोत्कृष्ट सुशासन माना है।
इतिहास साक्षी है कि ज्यों-ज्यों राष्ट्र, राजतन्त्र और राजाओं की अहिंसा के महान् सिद्धान्तों के प्रति आस्था कम होती गई, त्यों-त्यों असहिष्णुता, असमानता, आपसी कलह आदि की अभिवृद्धि होती गई । आपसी-कलह - फूट, वर्ग-विद्वेषआदि हिंसा की संततियां ही देश की दासता का प्रमुख कारण बनीं, इस तथ्य से कोई विचारक इन्कार नहीं कर सकता।
प्रार्य इन्द्रदिन्न - गणाचार्य आर्य सुहस्ती की परम्परा में आर्य सुस्थित-सुप्रतिबुद्ध के स्वर्गगमन के पश्चात् वीर नि० सं० ३३६ में कौशिक गोत्रीय आर्य इन्द्रदिन्न गणाचार्य नियुक्त किये गए। आर्य इन्द्रदिन्न के सम्बन्ध में इसके अतिरिक्त और कोई परिचय उपलब्ध नहीं होता। आपके गणाचार्य काल में आपके गुरुभाई आर्य प्रियग्रन्थ बड़े ही प्रभावक श्रमण बताये गए हैं। उनका संक्षिप्त परिचय यहां प्रस्तुत किया जा रहा है।
प्रार्य प्रियग्रंथ आर्य प्रियग्रन्थ जैन साहित्य में मन्त्रवादी प्रभावक के रूप में विख्यात रहे हैं। यों तो मन्त्रवाद का जैनजगत में कोई महत्व नहीं माना गया है। साधुओं के
घेत्त रण कडिनो पिउणा "जहा य बालस्स धम्मनित्यर हल्लागाइ पीडासंभवे वि परिणामसुंदरतणयो कड्ढेतस्स पिउणो न दोसो दिवो" तहा भगवमो पयाए, परिणाम सुंदर योवदोसनिग्गहाइ दंडं कुणमाणस्स न ताण बंपे कोवि दोसो प्रत्थीति ।।
[कहावली - भद्रेश्वरमूरि - प्रकाणित]
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