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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [प्रार्य खपुट आवश्यक चूणि, निशीथचूणि आदि में इन्हें विद्यासिद्ध एवं विद्याचक्रवर्ती जैसे विशेषणों से अभिहित किया गया है।' इससे यह स्पष्टरूपेण प्रमाणित होता है कि वे अतिशय विद्याओं के विशिष्ट ज्ञाता थे।
इनके जीवन से सम्बन्धित कुछ विशिष्ट घटनाओं का परिचय इस प्रकार है :
.. एक बार आर्य खपुट भृगुकच्छपुर पधारे। वहां उनका भगिनीपुत्र भुवन आपके उपदेशों से प्रभावित होकर आपके शिष्यरूप से श्रमणधर्म में दीक्षित हो गया। बुद्धिशाली समझ कर आर्य खपुट ने भुवन मुनि को कतिपय विद्याएं सिखाईं। संयोगवश भृगुपुर में बौद्ध भिक्षुओं ने राजा बलमित्र के सम्मान से गवित होकर जैन श्रमणों के उपाश्रय में घास की पूलियां गिराकर उन्हें पशुतुल्य बताते हुए द्वेष प्रकट करना प्रारम्भ किया। इससे भुवन मुनि बड़ा क्रुद्ध हुआ और श्रावक समुदाय को लेकर राजा बलमित्र की सभा में पहुंचा। वहां उसने उच्च स्वर में कहा- "हे राजन् ! तुम्हारे गुरु गेहेनर्दी बन कर जैन श्रमणों की निन्दा करते हैं। हम उनके साथ शास्त्रार्थ करने के लिए आ गये हैं। तुम उनको एक बार बुला कर मेरे साथ शास्त्रार्थ करवा दो। जिससे लोग भी वास्तविकता को जान सकें।" मुनि के आह्वान पर राजा ने बौद्धभिक्षणों को बुलाया और मनि भुवन के साथ शास्त्रार्थ करवाया। बौद्ध भिक्षु भुवन की अकाटय युक्तियों के समक्ष चर्चा में परास्त हो गये । भूवन मुनि की विजय से जैन-संघ में हर्ष की लहर फैल गई पर बौद्ध संघ को इस अपमान से गहरा दुःख हुआ। उन्होंने गुडशस्त्रपुर से बौद्धाचार्य वुड्ढकर को बुलाया और भुवन मुनि को उसके साथ शास्त्रार्थ के लिए कहा गया। भुवन मुनि ने विद्याबल एवं तर्क-बल से उसे भी पराजित कर दिया। इस अपमान से दुःखित होकर वृद्धकर कुछ ही दिनों पश्चात् काल कर गुहशस्त्रपुर में यक्ष के रूप से उत्पन्न हुमा । पूर्व-जन्म के वैर के कारण वह जैन संघ और श्रमणों को डराने एवं विविध यातनाएं पहुंचा कर सताने लगा। संघ ने प्रार्य खपुट को वहां की परिस्थिति से परिचित कर गुडशस्त्रपुर पधारने की प्रार्थना की।
प्रार्य खपुट गच्छ के अन्य साधुओं के साथ भुवन मुनि को वहीं भृगुपुर में रख कर स्वयं गुडशस्त्रपुर पधारे । जाते समय प्रार्य खपुट ने एक कपर्दि (जन्त्रीपट्ट) भुवन मुनि को देकर उसे सावधानी से रखने एवं कभी न खोलने का प्रादेश दिया। गुडशस्त्रपुर पहुंच कर प्रार्य खपुट ने यक्ष को अपने प्रभाव से अपना भक्त बना लिया और राजा सहित समस्त नागरिकजनों को भी प्रभावित किया। (क) विज्वाणचक्कवट्टी विग्जासिदो स जस्स वेगाऽवि । सिज्मेज्ज महाविग्मा, विज्जासिदोजखउरोग्य ।।
[भावश्यक मलय, पृ. ५४१] (ब) बो बिग्माबलेण जुत्तो जहा प्रज्य बउगे।
[निशीषणि, भा०३, पृ. ५८]]
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