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प्रा०श्याम राधा० स्थिति] दशपूर्वधर-काल : आर्य श्यामाचार्य
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स्पष्ट संकेत किया गया है। उसमें बताया गया है कि राजा जन्मेजय द्वारा किये गये वाजिमेध की परिसमाप्ति पर कृष्ण द्वैपायन ने राजा से कहा - राजन् तुमने जो यह अश्वमेध यज्ञ किया है, इसे अब प्रलय काल तक कोई क्षत्रिय नहीं करेगा।" यह सुनकर जन्मेजय को बड़ी निराशा हुई। उसने व्यास से प्रश्न किया- "भगवन् ! भविष्य में यदि और भी कोई इस यज्ञ को करने वाला हो तो उसके सम्बन्ध में मुझे वताइये ।"२
व्यासजी ने कहा – “कलियुग में एक काश्यप गोत्रीय ब्राह्मण सेनापति होगा, वही तुम्हारे पश्चात् इस यज्ञ को पुनः करेगा।"
हाथीगंफा के शिलालेख पर विचार करते समय पहले यह बताया जा चुका है कि यूनानी आक्रान्ता डिमिट्रियस ने भिक्खुराय खारवेल की मृत्यु के पश्चात् पुष्यमित्र के राज्यकाल में पाटलिपुत्र पर आक्रमण कर उस पर अधिकार भी कर लिया था। इससे ऐसा अनुमान किया जाता है कि डिमिट्रियस के आक्रमण से पूर्व ही पुष्यमित्र ने अश्वमेध यज्ञ सम्पन्न कर लिया हो। ग्रीक इतिहासकारों के अनुसार डिमिट्रियस के - भारत छोड़कर बैक्ट्रिया लौटने का समय यदि वीर नि० सं० ३५२, तदनुसार ईसा से १७५ वर्ष पूर्व माना जाय तो पुष्यमित्र द्वारा किए गये इस यज्ञ का समय वीर नि० सं० ३४७ और उसके अनुसार ईसा पूर्व १७० के आसपास का ठहरता है।
पुष्यमित्र द्वारा किये गए अश्वमेध यज्ञ के साथ ही देश में यज्ञों की एक तरह से लहर सी दौड़ गई। देश के विभिन्न भागों में छोटे-बड़े अनेक यज्ञ होने लगे । यही कारण है कि शृंगों के राज्यकाल में यत्र-तत्र अनेक यज्ञों के किए जाने के शिलालेख उपलब्ध होते हैं।
यह पहले बताया जा चुका है कि आर्य बलिस्सह के वाचनाचार्यकाल में शुंगों का राज्यकाल वीर नि० सं० ३२३ में प्रारम्भ हुमा। वीर नि० सं० ३५३ में पुष्यमित्र शंग की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र अग्निमित्र शंग मगध के राज्यसिंहासन पर आसीन हुआ । शुंग वंश के संस्थापक पुष्यमित्र शुंग के अतिरिक्त इस वंश के अन्य राजाओं एवं उनके राज्यकाल का जैन साहित्य में विशेष परिचय उपलब्ध नहीं होता। पौराणिक (हिन्दू) ग्रन्यों में शुंगवंश के राजामों एवं उनके राज्यकाल का उल्लेख निम्नलिखित रूप में उपलब्ध होता है :१. पुष्यमित्र
३६ वर्ष २. अग्निमित्र
८, ३. वसु ज्येष्ठ - त्वया वृत्तं ऋतुं चैव, वाजिमेधं परंतपः । क्षत्रिया नाहरिष्यन्ति. यावद्भूमि परिष्यति ।।
[हरिवंश पु० ३।२।३५] २ यद्यस्ति पुनरावृत्तियज्ञस्याश्वासयस्व माम् ।
[वही] ३ भौद्भिज्जो भविता कश्चित् सेनानी काश्यपो विजः ।
अश्वमेघ कलियुगे, पुनः प्रत्याहरिष्यति ।।
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