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जैन धर्म का मोनिक इतिहास-द्वितीय भाग [याजकाचार्य के रूप में ___"भगवन् ! यह सब पाप जैसे समर्थ. वेदाचार्य की कृपा और करुणा का ही प्रसाद है।" अपने रोम-रोम से प्रतीम कृतज्ञता प्रकट करते हुए पुमकितमना सोमिल ने गद्गद् स्वर में कहा। ___ "नहीं, सोमिल ! यह सब वेदमन्त्रों का प्रताप है।" इन्द्रभूति गौतम ने अपने प्रोन्नत भाल को और समुन्नत करते हुए कहा और वे कनखियों से आकाश की ओर देखते हुए पुनः शतगुरिणत उत्साह एवं उच्च स्वरों से वेदमन्त्रों के पाठ के साथ आहूतियों पर आहूतियां देने लगे।
.. पहले की अपेक्षा कहीं अधिक उच्च स्वर में की जाने वाली मंत्रध्वनि पौर स्वाहा के घोष आकाश को अधर उठाने लगे। हजारों ही नहीं, माखों नेत्र प्राकाशमार्ग से प्राते हुए सहस्रों देवविमानों की ओर अपलक देख रहे थे। ... उसी समय यज्ञस्थल को लांघ कर देवविमान आगे बढ़ गये। सहसा मंत्रपाठ की ध्वनि मंद पड़ गई । उत्साह का स्थान अचानक ही निराशा ने ले लिया। हताश लाखों लोचन मूक जिज्ञासा लिये कभी इन्द्रभूति गौतम के मुख की पोर, तो कभी जाते हुए विमानों की ओर देखने लगे । सर्वत्र निस्तब्धता छा गई।
स्वामिमान "अरे ! ये देवगण उस ओर पास ही के किस स्थान पर प्राकाश से नीचे की ओर उतर रहे हैं ?" सहसा अति विस्मित सहस्रों कष्ठों से य. प्रश्न फूट पड़ा।
जिस प्रकार प्रायः सभी नदियां समुद्र की ओर दौड़ी जाती हैं ठीक उसी प्रकार यज्ञमण्डप में एकत्रित अधिकांश जनसमूह देवविमानों के सम्पातस्थल की ओर उमड़ पड़ा।
इन्द्रभूति ने आश्चर्य, निराशा और झुंझलाहट भरे स्वर में कहा- "अरे! ये देवगण कहीं मार्ग तो नहीं भूल गये हैं ? आखिर ये इस महान यज्ञ को छोड़ कर अन्यत्र जा कहां रहे हैं ? वेदमन्त्रों द्वारा पाहूत एवं आमन्त्रित हो कर भी ये भ्रान्तिवश आगे कहां वढ़े जा रहे हैं ? इसकी छानबीन कर शीघ्र ही कोई मुके सूचित करे।"
कुछ ही समय पश्चात् कतिपय व्यक्तियों ने आकर इन्द्रभूति से कहा"प्राचार्य प्रवर ! समीपस्थ प्रानन्दोद्यान में सर्वज्ञ श्रमण भगवान महावीर पधारे हैं। उन्हें हाल ही में सकल चराचर का साक्षात्कार करने वाला समस्त लोकालोक को हस्तामलक की भांति देखने-जानने वाला केवलज्ञान हुअा है। अतः सभी देवगण भगवान् महावीर के समवसरण में जा रहे हैं।"
___इतना सुनते ही इन्द्रभूति गौतम क्षुब्ध हो उठे। उनकी आंखों से ऋोध की चिनगारियां मी बरसने लगीं। उन्होंने हंकार भरे स्वर में कहा- "अरे ! तुम यह क्या कह रहे हो? क्या मेरी उपस्थिति में और भी कोई सर्वज्ञ बनने का साहस कर
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