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भ० वि० मान्यताएं। श्रुतकेवली-काल : प्राचार्य श्री भद्रबाहु महत्व है। प्राचार्य भद्रबाह के जीवनचरित्र के सम्बन्ध में श्वेताम्बर और दिगम्बर इन दोनों परम्परामों में तो मान्यताभेद है ही पर भद्रबाहु के जीवनचरित्र विषयक दोनों परम्पराओं के ग्रन्थों का समीचीनतया अध्ययन करने से एक बड़ा आश्चर्यजनक तथ्य प्रकट होता है कि न श्वेताम्बर परम्परा के ग्रन्थों में प्राचार्य भद्रबाह के जीवनचरित्र के सम्बन्ध में मतैक्य है और न दिगम्बर परम्परा के प्रन्थों में ही। भद्रबाह के जीवन सम्बन्धी दोनों परम्पराओं के विभिन्न ग्रन्थों को पढ़ने से एक निप्पक्ष व्यक्ति को स्पष्ट रूप से ऐसा प्रतीत होता है कि संभवतः दोनों परम्परामों के अनेक ग्रन्थों में भद्रबाह नाम वाले दो-तीन प्राचार्यों के जीवन चरित्रों की घटनाओं को गड्ड-महु कर के अन्तिम चतुर्दश पूर्वधर प्राचार्य भद्रबाहु के जीवनचरित्र के साथ जोड़ दिया गया है । पश्चाद्वर्ती प्राचार्यों द्वारा लिखे गये कुछ ग्रन्थों का, उनसे पूर्ववर्ती प्राचार्यों द्वारा लिखित ग्रन्थों के साथ तुलनात्मक अध्ययन करने पर यह स्पष्टरूपेण आभासित होता है कि भद्रबाहु के चरित्र में पश्चाद्वर्ती प्राचार्यों ने अपनी कल्पनाओं के आधार पर कुछ घटनाओं को जोड़ा है। उन्होंने ऐसा अपनी मान्यताओं के अनुकूल वातावरण बनाने के अभिप्राय से किया अथवा और किसी दृष्टि से किया, यह निर्णय तो तुलनात्मक अध्ययन के पश्चात् पाठक स्वयं ही निष्पक्ष बुद्धि से कर सकते हैं।
इस प्रकार का तुलनात्मक अध्ययन शोधार्थियों एवं इतिहास में रुचि रखने वाले विज्ञों के लिये लाभप्रद होने के साथ-साथ वास्तविकता को खोज निकालने में सहायक सिद्ध होगा, इस दृष्टि से श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दोनों परम्परामों के ग्रन्थों में भद्रबाह से सम्बन्धित जो सामग्री उपलब्ध है, उसमें से प्रावश्यक सामग्री यहां प्रस्तुत की जा रही है ।
व्रत-पर्याय से पूर्व का जीवन । यों तो प्रव्रज्या ग्रहण से पूर्व का भद्रवाह का जीवन-परिचय श्वेताम्वर और दिगम्बर - दोनों ही परम्पराओं के ग्रन्थों में उपलब्ध होता है किन्तु वह सम्बन्धित घटनाचक्र और तथ्यों की कसौटी पर कसने से खरा नहीं उतरता। ऐसी दशा में भद्रबाह के गृहस्थ जीवन के परिचय के रूप में निश्चित रूप से केवल इतना ही कहा जा सकता है कि उनका जन्म वीर नि० संवत् ६४ में हुआ।
आप प्राचीन गोत्रीय ब्राह्मण थे और आपने ४४ वर्ष की अवस्था में प्राचार्य यशोभद्र स्वामी के उपदेश से प्रतिबोध पा कर भागवती दीक्षा ग्रहण की।
श्वेताम्बर परम्परागत परिचय दीक्षा ग्रहण के पश्चात् का प्राचार्य भद्रबाहु का जीवन-परिचय वित्योगालियपइन्ना, आवश्यकरिण प्रादि ग्रन्थों में अति संक्षिप्त एवं प्रतिस्वल्प मात्रा में मिलता है। दीक्षा-ग्रहण से पूर्व का भद्रबाहु का जीवनवृत्त "गच्याचार पत्रा" की गाथा ८२ की टीका में, प्रबन्ध चिन्तामरिण में तथा राजशेखरसूरि कत प्रबन्धकोश मादि अर्वाचीन ग्रन्थों में उपलब्ध होता है । जो क्रमशः इस प्रकार है:
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