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कोशा द्वारा मुनिको प्रति०] दशपूर्वर-कान : सर्व स्थूलभद्र
मुनि को विषय-वासनाओं के घोर अन्धकूप में गिरने से बचाने हेतु कोणा ने कहा - " महात्मन् ! साधाररण से साधारण व्यक्ति भी इस बात को भलीभांति समझता है कि हम वारांगनाएं केवल द्रव्य की ही दासियां हैं ।"
"भद्रे ! मुझ जैसे व्यक्ति से द्रव्य की आशा करना बालू से तेल निकालने जैमी दुराशा मात्र है । सुमुखि ! तुम मेरी दयनीय दशा पर दया कर मेरी मनोकामना पूर्ण करो ।” स्मरार्त मुनि ने याचनाभरे करुण स्वर में अभ्यर्थना की ।
चतुर कोशा ने दृढ़ता भरे स्वर में कहा - "महात्मन् ! मुनि भले ही पना नियम तोड़ दें पर वेण्या अपने परम्परागत नियमों का उल्लंघन नहीं कर सकती | ग्राम ग्रपनी मनोकामना पूर्ण करना ही चाहते हैं तो आपको एक उपाय मैं बता सकती हूं। वह यह है कि नेपाल देश के क्षितिपाल नवागत साधुत्रों को रत्नकम्बलों का दान करते हैं । आप वहां जाइये और रत्नकम्वल ले आइये ।"
विपयान्ध व्यक्ति को औचित्यानौचित्य का कोई ध्यान नहीं रहता । वह अपनी वासनापूर्ति के लिये नहीं करने योग्य कार्य को भी करने में नहीं हिच - किचाता। वह मुनि रत्नकम्बल की प्राप्ति के लिये तत्काल नेपाल की ओर चल पड़े। उन्होंने कामान्ध होने के कारण यह तक नहीं सोचा कि चातुर्मास के समय में विहार करना श्रमरणकल्प के प्रतिकूल है । विषयोपभोग के अनन्तर और भी प्रचण्ड वेग से भड़कने वाली और कभी न बुझने वाली कामाग्नि को शान्त करने की अभिलाषा लिये वह मुनि हिंसक पशुओं से व्याप्त सघन वनों और दुर्लध्य गगनचुम्बी पर्वतों को पार करते हुए नेपाल प्रदेश में पहुंचे। वहां के राजा से उन्हें रत्नकम्बल की प्राप्ति हुई । रत्नकम्बल को मुनि ने बांस के एक प्राकरर्णान्त डंडे में छुपा कर रख लिया और वे प्रसन्न मुद्रा में पुनः पाटलिपुत्र नगर की ओर लौट पड़े । कोशा के प्रावास में पहुंचते ही उनकी इच्छापूर्ति हो जायगी, इस मधुर आशा को अपने अन्तर में छुपाये वे बिना विश्राम किये द्रुततर गति से मंजिलों पर मंजिलें पार करते हुए एक विकट अटवी के मध्यभाग में पहुंचे। वहां चोरों के शकुनी तोते ने कहा - "एक लाख रौप्यक के मूल्य का माल आ रहा है ।"
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चोरों के अधिपति ने वृक्ष पर चढ़े अपने एक चोर साथी से पूछा - "सावधानी से देखो, कौन आ रहा है ?"
वृक्ष पर चढ़े चोर ने कहा - "एक साधु आ रहा है ।" उस मुनि के समीप आने पर चोरों ने उसे पकड़ा पर उसके पास किसी प्रकार का द्रव्य न पा कर उन्होंने उसे जाने की अनुमति दे दी। मुनि के पथ पर अग्रसर होते ही उस शकुनी ने पुन: कहा - "एक लाख रुपयों के मूल्य का माल जा रहा है।"
कहा कि वह सच सच बता दे, वस्तुतः
चोरों के नायक ने उस मुनि से
'उसके पास क्या है ?
मुनि ने बांस के दीर्घ दण्ड में छुपाये हुए रत्नकम्बल की ओर इंगित करते हुए कहा कि वह एक वेश्या को प्रसन्न करने के लिये नेपाल के महाराजा से एक
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