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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [पा० सु० की शिष्य-पर० १. स्थविर प्रार्य रोहण । इनसे उद्देहगण निकला। उद्देहगण से निम्नलिखित. ४ शाखाएं निकलीं :
(१) उदंबरिज्जिया, (२) मासपूरिया, (३) मइपत्तिा और
(४) पुण्यपत्तिका। उद्देहगण के निम्नलिखित ६ कुल थे :
(१) नागभूय, (२) सोमभूय, (३) उल्लगच्छ, (४) हत्थलिज्ज,
(५) नन्दिज्ज और (६) परिहासय । २. प्राचार्य यशोभद्र - इनमे उडुवाडिय गगग निकला । इस गण से निम्नलिखित ४ शाखाएं निकलीं :
(१) चंपिज्जिया, (२) भद्दिज्जिया, (३) काकन्दिया, और
(४) मेहलिज्जिया। इस उडुवाडिय गण के निम्नलिखित ३ कुल हुए :
(१) भद्रयश, (२) भद्रगुप्त और (३) यशोभद्र । ___३. मेघगणी - कल्पसूत्र स्थविरावली में इनके सम्बन्ध में कोई परिचय नहीं दिया गया है। इनसे कोई पृथक् गण नहीं निकला। ये गुणसुन्दर, गुणाकर और घनसुन्दर के नाम से भी पहिचाने जाते थे। श्यामाचार्य इन्हीं के शिष्य माने जाते हैं।
४. प्राचार्य कामधिगणी- इनसे बेसवाडिय गण निकला जिसकी (१) सावत्थिया, (२) रज्जपालिया, (३) अन्तरिज्जिया और (४) खेमिलज्जिया नाम की चार शाखाएं तथा (१) गणिय, (२) मेहिय, (३) कामड्ढिय एवं (४) इन्द्रपुरग नाम के चार कुल थे।
५. प्राचार्य सुस्थितसूरि और | इन दोनों प्राचार्यों के गण, शाखाएं
६. प्राचार्य सुप्रतिबद्धसूरि Jऔर कुल सम्मिलित थे। इन प्राचार्य सुस्थित से कोडिय-काकंदिय नामक गच्छ निकला। इस गच्छ की निम्नलिखित ४ शाखाएं और चार ही कुल थे :शाखाएं :
(१) उच्चानागरी, (२) विद्याधरी, (३) वज्री और
(४) मज्झिमिल्ला। कुल :
(१) बम्भलिज्ज, (२) वत्थलिज्ज, (३) वाणिज्य और
(४) पण्हवाहणय । उपरिलिखित ४ शाखाएं वस्तुतः कोटिकगण की मूल एवं मुख्य शाखाएं हैं। इनका प्रारम्भ प्रा. सुस्थित और सुप्रतिवद्ध के संतानीय क्रमशः स्थविर
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