________________
४५१
जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [कलि० महामेघ० खार० पतंजलि का समय भी ईसा से २००-१७५ वर्ष पूर्व का तदनुसार वीर नि० सं० ३२७-३५२ के प्रासपास का माना है। यह समय पुष्यमित्र के राज्यकाल और बाद तक का है।
तदनुसार वीर नि० सं० ३२३ में पाटलिपुत्र के राजसिंहासन को हथियाते ही पुष्यमित्र ने बौद्धों और जैनों पर अत्याचार करने प्रारम्भ किये और इसकी सूचना प्राप्त होते ही खारवेल ने (अपने राज्य के ८वें वर्ष में) वीर नि० सं० ३२४ में पुष्यमित्र पर पहला अाक्रमण किया। खारवेल ने अपने राज्य के बारहवें वर्ष में तदनुसार वीर नि० सं० ३२८ में दूसरी बार पुष्यमित्र को पराजित किया। इससे यह सिद्ध होता है कि खारवेल वीर नि० सं० ३१६ में कलिंग के राज्यसिंहासन पर बैठा।
हाथीगुंफा के शिलालेख में खारवेल के राज्यकाल के १३ वर्षों का ही विवरण दिया गया है। इस पर इतिहासज्ञों का यह अनुमान है कि संभवतः १३ वर्ष राज्य करने के पश्चात् खारवेल की मृत्यू हो गई हो।
इस प्रकार शिलालेख पर दिये गये विवरणों से इतना तो स्पष्ट हो जाता है किवीर नि० सं० ३१६ से ३२६ तक खारवेल का सत्ताकाल सुनिश्चित रूप से रहा । हिमवन्त स्थविरावली में भी खारवेल के दिवंगत होने का समय वीर नि० सं० ३३० दिया हुआ है।'
हिमवन्तस्थविरावली में उल्लेख किया गया है कि खारवेल वीर नि० सं० ३०. में कलिंग के राजसिंहासन पर प्रारूढ़ हुअा। स्थविरावलीकार का यह कपन, तथ्यों की कसौटी पर कसे जाने के अनन्तर खारवेल के हाथीगुंफा वाले हिलालेख के एतविषयक उल्लेख की तुलना में प्रामाणिक नहीं ठहरता। शिलालेख में उटैंकित इस तथ्य से कि खारवेल ने अपने राज्य के ८ वें वर्ष में पुष्यमित्र पर पहला मौर १२वें वर्ष में दूसरा अाक्रमण किया- यह भली-भांति सिद्ध हो जाता है कि वह वीर नि० सं० ३१६ में कलिंग के राजयसिंहासन पर बैठा । पुष्यमित्र ने ३२३ में मौर्यराज्य का अन्त कर पाटलिपुत्र के राज्यसिंहासन पर बैठते ही बब बनों पर अत्याचार करना प्रारम्भ किया तो खारवेल ने उसे राह पर लाने के लिए मगध पर अपने राज्य के ८ वें वर्ष में तदनुसार वीर नि० सं० ३२४ में पहला पाक्रमण पोर वीर नि० सं० ३२८ में दूसरा आक्रमण किया, यह ऊपर बताया जा चुका है।
इतिहासविदों के अनुमान के अनुसार यदि इस बात को ठीक मान लिया बाय किहाचीगुफा के शिलालेख में खारवेल के राज्य के केवल तेरह वर्षों का हो विवरण दिया हमा है, यह इस बात का द्योतक है कि उसके पश्चात् खारवेल की मृत्यु हो गई, तो उस दशा में हिमवन्त स्थविरावली में खारवेल के वीर नि० सं० ३३. में निधन को प्राप्त होने का उल्लेख करीब-करोब सही सिद्ध होता है। एखविणसासलपभावगो मिसुराय रिणवो णेगे धम्मकयारिण किच्चा सुझायोववेपो पाराबोर सोसाहित तिसय बासेसु विदकतेमु सग्गं पत्तो। [हिमवन्त स्थविरावली]
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org