________________
४६९
जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [खा० के शि० का ले० ३. खारवेल के उपरोक्त शिलालेख में एक ऐसी ऐतिहासिक घटना का उल्लेख विद्यमान है, जो खारवेल की मृत्यु के २८ वर्ष पश्चात् घटित हुई। इस शिलालेख की आठवीं पंक्ति में यूनानी आक्रामक यवनराज डिमित के दलबल सहित पलायन करने (संभवतः बैक्ट्रिया लौट जाने) का उल्लेख किया गया है । वह पंक्ति इस प्रकार है :
___....। अठमे च वसे महता सेना .... गोरथगिरि (७वीं पंक्ति) घातापयिता राजगहं उपपीड़ापयति (1) एतिनं च कंमापदान - संनादेन संवित सेन - वाहनो विपमुंचितु मधुरं अपयातो यवनराज डिमित...... (पंक्ति ८)
इस पंक्ति में स्पष्ट रूप से यही दर्शाया गया है कि कलिंगपति खारवेल द्वारा राजगह पर किये गये प्रचण्ड अाक्रमण की बात सुनकर यवनपति डिमित (डिमिट्रियस) हिन्दुस्तान छोड़कर अपने देश बैक्ट्रिया की ओर लौट गया ।
। यूनानी आक्रान्ता डिमिट्रियस द्वारा भारत पर किये गये आक्रमण का उल्लेख पुष्यमित्र के पुरोहित एवं अग्निमित्र के राज्यकाल में भी विद्यमान व्याकरण भाष्यकार पतंजलि ने पाणिनी व्याकरण के सूत्र "अनद्यतने ल" के उदाहरण में "अरुणद्यवनः साकेतम्," "अरुणद्यवनो माध्यमिकाम्" - इन दो वाक्यों के द्वारा किया है।
गार्गी संहिता के युगपुराण प्रकरण में पांचाल, मथुरा, पाटलिपुत्र एवं मध्यदेश पर यवन आक्रमण का उल्लेख किया गया है ।' भीषण गृह कलह के कारण उस यवन आक्रान्ता के स्वदेश लौटने का भी गार्गीसंहिता में उल्लेख किया गया है । यूनानी इतिहासकारों ने भी मिडिट्रियस के सम्बन्ध में लिखा है कि जिस समय वह भारतविजय के अपने अभियान में उलझा हुआ था, उस समय उसके प्रतिद्वन्द्वी ने उसके राज्य पर अधिकार कर लिया और इस सूचना के मिलते ही डिमिटियस भारत से दलबल सहित स्वदेश-बैक्ट्रिया लौट गया। गार्गीसंहिता और ग्रीक इतिहासकारों के उल्लेख एक दूसरे की पुष्टि करते हैं।
यह पहले सिद्ध किया जा चुका है कि पुष्यमित्र का शासन ईसा पूर्व २०४ से ईसा पूर्व १७४ तक अर्थात् वीर नि० सं० ३२३ से ३५३ तक रहा। यूनानी इतिहासकार डिमिट्रियस के बैक्ट्रिया लौटने की घटना को ईसा पूर्व १७५ की मानते हैं। खारवेल का समय २११ से १९८ ईसा पूर्व का तदनुसार वीर नि० सं० ३१६ से ३२६ का रहा है। इस प्रकार डिमिट्रियस के भारत से स्वदेश लौटने की घटना खारवेल की मृत्यु के २३ वर्ष पश्चात् घटित हुई । यह एक ही तथ्य इस ' ततः साकेतमाक्राम्य, पांचालान्मथुरां तथा। यवनाः दुष्टविक्रान्ताः, प्राप्स्यन्ति कुसुमध्वजम् ।।
[गार्गीसंहिता, युगपुराण प्रकरण] २ मध्यदेशे न स्थास्यन्ति, यवनाः युद्धदुर्मदाः । • प्रात्मचक्रोत्थितं घोरं, युद्धं परमदारुणम् ॥
[वही]
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org