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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [भिक्वुराय खारवेल का वंश
ययाति के बड़े पुत्र अनु की वंश परम्परा में आगे चल कर हुए कलिंग नामक राजकुमार के नाम पर कलिंग का राजवंश और कलिंग राज्य चला।' इस दृष्टि से शोभनराय से पहले के राजा भी चन्द्रवंशी ही थे पर वे हैहय शाखा के नहीं, अपितु कलिंग शाखा के थे ।
बार्हद्रथों के नाम से विख्यात चेदिवंश भी मूलतः चन्द्रवंश की ही शाखा होने के कारण क्षत्रियों की चेदि शाखा में उत्पन्न हुया प्रत्येक व्यक्ति भी 'ऐल' के विशेषण से अभिहित किया जा सकता है। वस्तुतः चन्द्रवंशी राजा ययाति के परम पितृभक्त पुत्र पुरु से जो पौरवों का वंश चला, उसी से क्षत्रियों की चेदी शाखा निकली थी। चेदि देश के अधिपति उपरिचर वसु की गणना पुरुवंश के पूर्व - पुरुषों में की गई है। वैदिक परम्परा के पुराणों तथा जैन परम्परा के प्राचीन ग्रन्थों में उपरिचर वसु को हरिवंश (चन्द्रवंश) का राजा बताया गया है ।
___ इस प्रकार कलिंग का राजवंश, चेदि राजवंश और हैहय-क्षत्रिय चेटक का वंश-ये तीनों ही राजवंश चन्द्रवंशी माने गये हैं, अतः इन्हें सोमवंशी और ऐलवंशी तथा हरिवंशी- इन नामों से भी अभिहित किया जा सकता है।
हाथीगंफा के शिलालेख में प्रयुक्त 'ऐलेन' एवं 'चेतराजवसवधनेन' इन शब्दों के आधार पर निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि खारवेल उपरोक्त तीन राजवंशों में से किस वंश के थे । हिमवन्त स्थविरावली में इस गुत्थी को सुलझाते हुए स्पष्ट कर दिया गया है कि भिक्खुराय खारवेल चन्द्रवंशी हैहय क्षत्रिय चेटक के वंशधर थे। ___ इस शिलालेख की दूसरी पंक्ति में 'वेनाभिविजयो' शब्द को देख कर कुछ विद्वानों ने उत्तानपाद के वंश में उत्पन्न वेन के साथ खारवेल का सम्बन्ध जोड़ने का प्रयास किया है, जो निराधार होने के कारण किसी भी दशा में मान्य नहीं हो सकता। शिलालेख में प्रयुक्त 'वेनाभिविजयो' शब्द के प्रयोग से भिक्खुराय खारवेल को गरुड़ की तरह प्रबल वेग से शत्रुओं पर आक्रमण कर विजय प्राप्त करने वाला बताया गया है ।
खारवेल के शिलालेख का लेखनकाल हाथीगुंफा वाले खारवेल के शिलालेख के सम्बन्ध में जहां तक हमारा खयाल है प्रायः सभी विद्वानों का यही अभिमत रहा है कि यह शिलालेख स्वयं खारवेल ने अपने जीवन-काल में ही उट्ट कित करवाया था पर वास्तविकता इससे कुछ भिन्न प्रतीत होती है।
इस लेख में प्रयुक्त शब्दों पर भाषाविज्ञान की दृष्टि से तथा इसमें चचित घटना पर ऐतिहासिक सन्दर्भ के साथ गम्भीरतापूर्वक विचार करने पर यह सिद्ध ' श्रीमद्भागवत, नवम स्कन्ध, अ० ३०, श्लोक ५ २ श्रीमद्भागवत, नवम स्कन्ध, अ० २२, श्लोक ६ ३ जैन धर्म का मौलिक इतिहास, भा० १, पृ० १४४, १५०
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