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प्रा० बलि० का० राजवंश] दशपूर्वघर-काल : प्रार्य बलिस्सह
४८१ पाटलिपुत्र से हटाकर अवन्ती (उज्जयिनी) स्थानान्तरित करनी पड़ी। अशोक के राज्यकाल में पाटलिपुत्र बौद्धों का सुदृढ़ केन्द्र बन चुका था। बहुत सम्भव है कि बौद्धधर्मावलम्बियों ने अशोक के द्वितीय पुत्र दशरथ को- जो कि बौद्धधर्मावलम्बी था-- मगध के सिंहासन पर बिठाने का प्रबल प्रयत्न किया हो । और बौद्धों के प्राबल्य अथवा अन्य कारणों से सम्प्रति को अपने शासन के दो वर्ष पश्चात् पाटलिपुत्र का परित्याग कर कुणाल को कुमारभूक्ति में प्राप्त अवन्तीराज्य की नगरी उज्जयिनी में अपनी राजधानी स्थापित करनी पड़ी हो।
___ पाटलिपुत्र से अवन्ती की ओर सम्प्रति के प्रस्थित होते ही अशोक के दूसरे पुत्र दशरथ ने पाटलिपुत्र के राज्यसिंहासन पर अधिकार कर लिया। और इस प्रकार मौर्य-राज्य दो भागों में विभक्त हो गया। पाटलिपुत्र में दशरथ का राज्य रहा और अवन्ति में सम्प्रति का। “संपइ रिणवोवि पाडलिपुत्तंमि रिणयाणेगसत्तुभयं मुणित्ता, रायहारिंग तच्चा .... अवंतीरणयरिम्मि ठिग्रो. सुहंसुहेणं रज्जं. कुणइ।" हिमवन्तस्थविरावली के इस पाठ से भी इस घटना की सत्यता सिद्ध होती है।
वीर नि० सं० २६३ में सम्प्रति की मृत्यु के पश्चात् संभव है पाटलिपुत्र के मौर्यवंशीय राजा दशरथ के पुत्र ने अवन्तिराज्य पर भी अधिकार कर लिया। संप्रति के निधन के पश्चात् जैन ग्रन्थों में पुण्यरथ और वृहद्रथ – इन दो मौर्य राजाओं का ही उल्लेख उपलब्ध होता है। इस प्रकार जैन ग्रन्थों के उल्लेखानुसार चन्द्रगुप्त द्वारा प्राप्त की गई राजसत्ता (१) चन्द्रगुप्त, (२) बिन्दुसार, (३) अशोक, (४) कुरणाल, (५) सम्प्रति, (६) पुण्यरथ और (७) वृहद्रथ इन सात पीढ़ियों तक ही रही। जबकि नन्द की राजकुमारी द्वारा चन्द्रगुप्त के रथ में एक पैर रखने के समय चन्द्रगुप्त के रथ के ६ ग्रारों के टूटने पर चाणक्य के कथनानुसार चन्द्रगुप्त की ६ पीढ़ियों तक मौर्यवंश का राज्य रहना चाहिये 1 इससे यह प्रकट होता है कि सम्प्रति और वहद्रथ के शासनकाल के बीच की अवधि में मौर्य सत्ता के पाटलिपुत्र और उज्जयिनी इन दो पृथक स्थानों में, दो भागों में विभक्त होने तथा पुनः एक होने के कारण कहीं कुछ भ्रान्ति हो जाने के फलस्वरूप दो मौर्य राजारों का उल्लेख करने में कहीं कोई त्रटि रह गई हो।
सनातन परम्परा के पुराणग्रन्थों में चन्द्रगुप्त से लेकर वृहद्रथ तक है मौर्य राजाओं का उल्लेख किया गया है। भागवत्कार का एतद्विषयक उल्लेख सर्वाधिक स्पष्ट है। भागवत्कार ने एक के पश्चात् होने वाले निम्नलिखित ६ मौर्यवंशी राजाओं के नाम दिये हैं -
१. चन्द्रगुप्त, २. वारिसार, ३. अशोकवर्द्धन, ४. सुयशा, ५. संगत, ६. शालिशूक. ७. सोमशर्मा (सोमवर्मा), ८. शतधन्वा. और ६. वृहद्रथ ।' ' स एव गुप्तं वे, द्विजो राज्येऽभिपेक्ष्यति । तत्सुतो वारिसारस्तु, ततश्चाशोकवर्द्धनः ।।१३।।
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