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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [पा. बलि का. राजवंश
भागवतकार ने उपरोक्त ६ नाम देने के पश्चात् लिखा है -
"मौर्या ह्येते दश नृपाः" ऐसा प्रतीत होता है कि विष्णुपुराण में पांचवें मौर्य राजा का नाम दशरथ दिया है, जो कि सम्प्रति के उज्जयिनी चले जाने के अनन्तर पाटलिपुत्र का अधिपति बना ! मत्स्यपुराण' में भी दशरथ के नाम सहित १० मौर्य राजाओं का उल्लेख है। संभव है उसी मान्यता को ध्यान में रखते हुए भागवतकार ने दश नाम न देकर भी १० की संख्या उल्लिखित कर दी हो। वायु पुराण में ६ मौर्य राजाओं के नाम दिये गये हैं।
... "६ पीढ़ियों तक तुम्हारा राज्य चलता रहेगा"-परिशिष्ट पर्वकार प्राचार्य हेमचन्द्र द्वारा चाणक्य के मुख से कहलवाये गये इस वाक्य की संगति तभी बैठती है, जबकि चन्द्रगुप्त से लेकर वृहद्रथ तक मौर्य राजाओं की संख्या ६ मानी जाय ।
उपरिलिखित तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में विचार करने पर, पुराणकारों द्वारा उपरोक्त कम से दी गई मौर्य राजाओं की संख्या ही उचित प्रतीत होती है। भिन्न-भिन्न ग्रन्थकारों द्वारा, इनमें से कतिपय राजाओं का नामभेद के साथ उल्लेख किया गया है, इसके पीछे यह कारण हो सकता है कि उन राजाओं को अपरनाम से भी सम्बोधित किया जाता रहा हो.। उदाहरणस्वरूप कुरणाल' और 'सम्प्रति', कम से कम ये दो नाम तो उन राजाओं के वास्तविक नाम न होकर न्यार के नाम ही हो सकते हैं।
. इस प्रकार यदि आर्य बलिस्सह का वाचनाचार्यकाल वीर नि० सं० २४५ से ३२६ तक का अर्थात् ८४ वर्ष का माना जाय तो यह कहना होगा कि उनके प्राचार्यकाल में बिन्दुसार का १३ वर्ष और शेष ७ मौर्य राजाओं का ६५ वर्ष तक शासन रहा।
कलिंगपति महामेघवाहन खारवेल कालिंगाधिपति महाराजा भिक्खराय खारवेल का स्थान कलिंग के इतिहास में तो अनन्यतम है ही पर जैन इतिहास में भी उनका नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित किया जाता रहकर अमर रहेगा। अपने राज्य की अभिवद्धि के लिये सुयशा भविता तस्य, संगतः सुयशः सुतः । शालिशूकस्ततस्तस्य, मोमशर्मा भविष्यति ।।१४।। शतधन्वा ततस्तस्य, भविता तद् वृहद्रथः । मोर्या ह्यते दश नृपाः, सप्तत्रिंशच्छतोत्तरम् ।।१५।।
[श्रीमद्भागवत, स्कन्ध १२, प्र० १] ' इत्येते दश मौर्यास्तु, ये भोक्ष्यन्ति वसुन्धराम् ।
[मत्स्यपुराण, अ० २७१, श्लोक २१ से २५] २ इत्येते नव भूपा ये, भोक्ष्यन्ति च वसुन्धराम् । सप्तत्रिशच्छतं पूर्ण तेभ्यस्तु गोभविष्यति ।।१६५।।
[वायुपुराण, अनुषंगपाद-समाप्ति]
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