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११. मार्य बलिस्सह] दशपूर्वघर-काल : मायं बलिस्सह
४७५ किया। फलस्वरूप आठ स्थविरों में से रोहगुप्त के अतिरिक्त किसी ने भी अलग गण स्थापित करने का प्रयत्न नहीं किया।
पहले बताया जा चुका है कि आर्य सुहस्ती ने संघ की ऐक्यता बनाये रखने के लिये गणाचार्य के अतिरिक्त वाचनाचार्य एवं युगप्रधानाचार्य की नई परम्परा प्रचलित की। तदनुसार उन्होंने दोनों परम्परामों में सामंजस्य एवं सहयोग बनाये रखने की दृष्टि से प्रागम के विशिष्ट ज्ञाता बलिस्सह को सम्पूर्ण संघ का वाचना. चार्य नियुक्त किया।
आर्य बलिस्सह ने श्रमण-समुदाय में पागमज्ञान का प्रचार-प्रसार करते हए जिन-शासन की प्रशंसनीय सेवा की और अपने समय में हुई श्रमसंघ की वाचना में ११ अंगों एवं १० पूर्वो के पाठों को व्यवस्थित करने में भी अपना पूर्ण योगदान दिया, जैसा कि हिमवन्त स्थविरावली में बताया गया है :
"पहले जो १२ वर्ष तक दुष्काल पड़ा था उसमें आर्य महागिरि पौर मार्य सुहस्ती के बहुत से शिष्य शुद्ध आहार न मिलने के कारण कुमारगिरि नामक पर्वत पर अनशन कर के शरीर छोड़ चुके थे। उसी दुष्काल के प्रभाव से तीर्थकर महावीर द्वारा प्ररूपित बहुत से सिद्धान्त भी नष्टप्राय हो गये थे। यह जान कर भिक्खुराय ने जैन सिद्धान्तों का संग्रह और जैन धर्म का विस्तार करने के लिये सम्प्रति राजा की तरह श्रमण-निग्रन्थ तथा निग्रन्थियों की एक सभा कुमारगिरि पर प्रायोजित की, जिसमें प्रार्य महागिरि की परम्परा के प्रार्य बलिस्सह, बोधिलिंग, देवाचार्य, धर्मसेनाचार्य, नक्षत्राचार्य प्रादि २०० जिनकल्प की तुलना करने वाले साधु, तथा आर्य सुस्थित, सुप्रतिबुद्ध, उमास्वाति, श्यामाचार्य प्रभृति ३०० स्थविरकल्पी साधु सम्मिलित हुए। प्रार्या पोइरणी आदि ३०० साध्वियां भी वहां उपस्थित हुई थीं। भिक्खुराय एवं सीवंद, चूर्णक, सेलक प्रादि ७०० श्रमरणोपासक और भिक्खुराय की महारानी पूर्णमित्रा प्रांदि ७०० श्राविकाएँ भी उस सभा में उपस्थित थीं।"
कहा जाता है कि बलिस्सह ने वाचना के प्रसंग पर विद्यानुप्रवाद पूर्व से अंग-विद्या जैसे शास्त्र की भी रचना की। बलिस्सह के गरण में सैंकड़ों साधु एवं साध्वियां होने पर भी उनका कहीं उल्लेख नहीं होने के कारण यहाँ परिचय नहीं दिया जा सकता। इतना ही कहा जा सकता है कि इनके ४ शिष्यों से. उत्तर बलिस्सह गण की ४ शाखाएँ प्रकट हुई, जिनका कल्पसूत्रीय स्थविरावली में भी उल्लेख मिलता है। उन शाखामों के नाम इस प्रकार हैं:
१. कोसंबिया २. सोतित्तिया ३. कोडंबाणी और ४. चन्दनागरी ।' 'थेरेहितो णं उत्तरबलिस्सहेहितो तत्य णं उत्तरबलिस्सह गणे नामं गणे निग्गए । तस्स
णं इमामो चत्तारि साहापो एवमाहिज्जति, तं जहा - कोसंबिया, सोतित्तिया, कोडंबाणी. चंदनागरी ॥२०६।।
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