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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [गु.सु. - युगप्रधानाचार्य इस प्रकार आर्य बलिस्सह महागिरि की परम्परा के गणाचार्य और समस्त संघ के वाचनाचार्य - इन दोनों पदों को चिरकाल तक सुशोभित करते रहे। इनके प्राचार्य काल आदि का परिचय उपलब्ध नहीं होता। अनुमानतः वीर नि० सं० २४५ से ३२६ तक इनका सत्ताकाल हो सकता है।
११. गुर पुन्दर-युगप्रधानाचार्य युगप्रधान-परम्परानुसार प्रार्य बलिस्सह के समय में आर्य गुणसुन्दर (गुणाकर) युगप्रधानाचार्य बताये गये हैं। इनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है :
प्राचार्य सहस्ती के पश्चात वीर नि० सं० २६१ में गुणसुन्दर युगप्रधानाचार्य पद पर नियुक्त किये गये। इनका जन्मकाल. वीर नि० सं० २३५, दीक्षाकाल २५६ और युगप्रधान-पदारोहण २९१ में माना गया है। ४४ वर्ष तक युगप्रधान रूप से जिनशासन की सेवा कर वीर नि० सं० ३३५ में आपने १०० वर्ष की आयु पूर्ण कर स्वर्गारोहण किया।
प्राचार्य सुहस्ती के शिष्यसमूह में आर्य गुणसुन्दर का मेघगणी के नाम से उल्लेख किया गया है। यह पहले बताया जा चुका है कि मेघगरणी, गुणसुन्दर, गुणाकर एवं घनसुन्दर -ये चारों इन्हीं युगप्रधानाचार्य के नाम माने गये हैं। इनके शिष्य-समुदाय एवं कार्यकलापों का विशेष परिचय प्राप्त नहीं होता।
११. सुस्थित-सुप्रतिबुद्ध-गणाचार्य प्रार्य सुहस्ती के पश्चात् जिस प्रकार गुणसुन्दर युगप्रधानाचार्य हए उसी प्रकार मार्य सुहस्ती की परम्परा में प्रार्य सुस्थित और सुप्रतिबुद्ध गणाचार्य नियुक्त किये गये।
प्रार्य सुस्थित और सुप्रतिबुद्ध - ये दोनों सहोदर थे। इनका जन्म काकंदी नगर के व्याघ्रापत्य गोत्रीय राजकुल में हुमा था। ऐसा उल्लेख उपलब्ध होता है कि इन दोनों प्राचार्यों ने सूरिमंत्र का एक करोड़ वार जाप किया। इस कारण इनका गच्छ, कौटिक गच्छ के नाम से विख्यात हुमा। इससे पहले प्रार्य सुधर्मा से प्रार्य सुहस्ती तक भगवान् महावीर का धर्मसंघ निर्ग्रन्थ गच्छ के नाम से विख्यात था।
हिमवन्त स्थविरावली के अनुसार कुमारगिरि पर्वत पर कलिंगपति महामेघवाहन द्वारा भागमवाचनार्य जो चतुर्विधसंघ एकत्रित किया गया था, उसमें ये दोनों प्राचार्य भी उपस्थित थे। 'ग्य सुठिय-सुपरिवह उम (1) साइ सामग्वाइणं घेरकप्पियाणं वि तिमिसया णिगंठाणं समागया ।
[हिमवन्त स्वपिरावनी हस्तनिधित
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