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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [प्रा. बलि. का. राजवंश पुकार सुन, भिक्खुराय ने मगध पर प्राक्रमण कर पुष्यमित्र को दो बार पराजित किया। इसके पश्चात् भिक्खुराय ने कुमारगिरि पर आगमों के उद्धार हेतु श्रमणों, श्रमणियों, श्रावकों एवं श्राविकानों को एकत्रित किया और अंगशास्त्रों तथा पूर्वज्ञान का संकलन, संग्रह अथवा पुनरुद्धार करवाया।
___ अंगशास्त्रों के संकलन, संग्रह अथवा संरक्षण हेतु खारवेल द्वारा किये गये उपरोक्त संघसम्मिलन का समय वीर नि० सं० ३२३ के पश्चात् का ३२७ से ३२६ के बीच का ठहरता है। क्योंकि वीर नि० के पश्चात् ६० वर्ष तक पालक का, तदनन्तर १५५ वर्ष तक नन्दवंश का, तत्पश्चात् १०८ वर्ष तक मौर्यवंश का राज्य रहा । इस प्रकार वीर नि० सं० ३२३ में पुष्यमित्र पाटलिपुत्र के सिंहासन पर प्रारूढ़ हुमा।
पाटलिपुत्र के सिंहासन पर आसीन होते ही पुष्यमित्र ने बोद्धों और जैनों पर घोर अत्याचार करने प्रारम्भ किये। जैन धर्म के परम पोषक कलिंगराज महामेघवाहन भिक्खुराय खारवेल को जब पुष्यमित्र द्वारा जैनों पर किये जाने वाले प्रत्याचार की सूचना मिली तो उसने अपने राज्यकाल के ८ वें वर्ष में पाटलिपुत्र पर एक बड़ी सेना लेकर प्राक्रमण कर दिया।' संभव है पुष्यमित्र ने कलिंगराज की अजेय शक्ति के समक्ष झुक कर भविष्य में जैनों पर किसी प्रकार के अत्याचार न करने की प्रतिज्ञा कर खारवेल के साथ संधि कर ली होगी । संधि के पश्चात् खारवेल के लौट जाने पर जब जैन धर्म के परम विद्वेषी पुष्यमित्र ने पुन: जैनों पर अत्याचार करना प्रारम्भ किया तो पहले आक्रमण के चार वर्ष पश्चात् खारवेल ने अपने राज्य के १२वें वर्ष में एक विशाल सेना ले कर पाटलिपुत्र पर आक्रमण किया । उसने पुष्यमित्र के सुगांगेय नामक राजप्रासाद में अपने हाथियों को पानी पिलाया। पुष्यमित्र को अपने पैरों पर गिरा कर नंदराजनीत कालिंगजिन संनिवेस'..."और रत्नादि को ले कर खारवेल पुनः कलिंग लौट गया ।
____ इस प्रकार जैनों के उस समय के भयंकर शत्रु पुष्यमित्र से अच्छी तरह निबट चुकने के पश्चात् वीर नि० सं० ३२७ से ३२६ के बीच के किसी समय में
'ठमे च वसे महता सेना....."गोरपगिरि घातापयिता राजगह उपपीडापयति (1) एतिनं च कंमापदान-संनादेन संवितसेन-वाहनो विपमुंचित् मधुरं प्रपयातो यवनराज हिमित ।
[कलिंग च. म. खारवेल के शिलालेख का वि. पृ. १५] २ वारसमे च वसे....."हस के ज. सबसेहि.."वितासयति उत्तरापथ - राजानो........
मगवानं च विपुलं भयं जनेतो हथी सुगंगीय (.) पाययति (1) मागधं च राजानं वसहतिमितं पादे वंदापयति (1) नंदराजनीतं च कालिंगजिनं संनिवेसं ....... गह-रतनान पम्हिारेहि अंगमागधवसुं च नेयाति (1) (कलिंग चक्रवर्ती महाराज खारवेल के शिलालेख का विवरण श्री के. पी. जायसवालकृत पृ. १६)
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