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सुस्थित सुप्रतिबुद्ध दशपूर्वधर-काल : मार्य बलिस्सह
प्राचार्य सुस्थित-सुप्रतिबुद्ध के निम्नलिखित ५ शिष्य थे :१. आर्य इन्द्रदिन्न
४. आर्य ऋषिदत्त और २. आर्य प्रियग्रन्थ
५. आर्य अर्हदत्त . ३. आर्य विद्याधर गोपाल
इनमें से प्रथम शिष्य आर्य इन्द्रदिन्न प्राचार्य सुस्थित-सूप्रतिबद्ध के पश्चात् गणाचार्य और द्वितीय शिष्य आर्य प्रियग्रन्थ बड़े मन्त्रवादी प्रभावक हुए। इन दोनों का परिचय प्रागे यथास्थान दिया जा रहा है।
आर्य सूस्थित का जन्म वीर नि० सं० २४३ में हरा । ३१ वर्ष तक गृहस्थ पर्याय में रहने के पश्चात् उन्होंने वीर नि० सं० २७४ में आर्य सुहस्ती के पास श्रमण-दीक्षा प्रहरण की। आर्य सुहस्ती के १२ प्रमुख शिष्यों में आपका पांचवां स्थान था। १७ वर्ष तक सामान्य श्रमणपर्याय में रहे। वीर नि० सं० २६१ में प्रार्य सहस्ती के स्वर्गस्थ होने के पश्चात् आपको गणाचार्य नियुक्त किया गया। ४८ वर्ष तक गणाचार्य पद पर रहते हुए आपने भगवान् महावीर के शासन की उल्लेखनीय सेवाएं कीं और वीर नि० सं० ३३६ में ६६ वर्ष की आयु पूर्ण कर स्वर्गारोहण किया।
प्रार्य बलिस्सह कालोन राजवंश पहले किये गये उल्लेखानुसार यह तो निश्चित है कि आर्य महागिरि के स्वर्गगमन के पश्चात् आर्य बलिस्सह वीर नि० सं० २४५ में प्रार्य महागिरि के गण के गरणाचार्य बने । इसके पश्चात् आर्य बलिस्सह को संघ का वाचनाचार्य बनाया गया। परन्तु इस प्रकार का उल्लेख कहीं उपलब्ध नहीं होता कि वीर नि० २४५ से प्रारम्भ हुआ आर्य बलिस्सह का प्राचार्यकाल कब तक रहा। इस सम्बन्ध में बलिस्सह विषयक जो-जो उल्लेख विभिन्न पुस्तकों में उपलब्ध हैं, उन्हीं के आधार पर अनुमान का सहारा लेना होगा।
हिमवन्त स्थविरावली के उल्लेखानुसार कलिंगपति महामेघवाहन भिक्खुराग ने पूर्वज्ञान और एकादशांगी का पुनरुद्धार करने हेतु, जो कुमारगिरि पर चतुर्विध संघ को एकत्रित किया था, उसमें आर्य बलिस्सह विद्यमान थे।' यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि वीर निर्वाण सं० ३२३ में मौर्यवंश के अन्तिम राजा वृहद्रथ को मार कर उसका सेनापति पुष्यमित्र शुंग मगध के सिंहासन पर प्रारूढ़ हुमा । पुष्यमित्र के प्रत्याचारों से संत्रस्त मगध की जैनधर्मावलम्बी जनता की 'पुग्विं तित्ययरगणहरपरुवियं पवयणं वि बहुसो विरणोपायं पाऊण तेणं मिक्सुरायणिवेणं मिणपवयण संगहनें जिणषम्मवित्परळं संपहरिणवुम्ब समणाणं रिणग्गठाणं पिगंठी य एगा परिसा तत्व कुमरीपम्बयतित्पम्मि मेलिया । तस्य रणं राणं प्रजमहानिरीलगनुपताणं गतिस्ताह बोहिमिंग, देवापरि धम्मसेल नसताबरिया विणकप्पिनुमत्तं कुणमालाणं दुनिया पिगंगणं समागया। हिमवंत स्पपिरावनी, हस्तलिक्षित]
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