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युगप्रधानाचार्य-परम्परा] दशपूर्वघर-काल : मायं महागिरि-सुहस्ती ११. मार्य गुरणसुन्दर
१६. आर्य रक्षित १२. प्रार्य श्यामाचार्य
२०. प्रार्य दुर्बलिका पुष्यमित्र (कालकाचार्य प्रथम)
२१. प्रार्य वज्रसेन १३. मार्य स्कंदिलाचार्य
२२. प्रार्य मागहस्ती १४. आर्य रेवतीमित्र
२३. प्रार्य रेवतीमित्र १५. प्रार्य धर्म
२४. प्रार्य सिंह १६. प्रार्य भद्रगुप्त
२५. आर्य नागार्जुन १७. प्रार्य श्रीगुप्त
२६. प्रार्य भूतदिन्न १८. आर्य वचस्वामी
२७. आर्य कालकाचार्य (चतुर्थ) __ गणाचार्य-परम्परा आर्य महागिरि और प्रार्य सुहस्ती, इन दोनों प्राचार्यों के पृथक्-पृथक् दो गण थे और उन दोनों गणों के अनुक्रमशः अलग-अलग प्राचार्य हुए हैं। इन दो गरणों के अतिरिक्त कालान्तर में स्वतन्त्र रूप से जो अनेक गण हुए, उन सब गणों के भी भिन्न-भिन्न प्राचार्य पट्टानुक्रम से हुए हैं। इसके साथ ही साथ अनेक वाचनाचार्य और युगप्रधानाचार्य ऐसे भी हुए हैं, जो अपने-अपने गणों के गणाचार्य रहते हुए वाचनाचार्य अथवा युगप्रधानाचार्य भी रहे हैं। ऐसी स्थिति में सभी गणों के गणाचार्यों की नामावली का दिया जाना संभव प्रतीत नहीं होता। विभिन्न गणों की पट्टावलियों से ही उनके सम्बन्ध में परिचय प्राप्त किया जा सकता है।
उन गणों में प्रार्य सुहस्ती का गण प्रारम्भ से ही प्रति विशाल और प्रसिद्ध रहा। कल्पसूत्र-स्थविरावली को प्रार्य सुहस्ती की प्राचार्य परम्परा माना गया है। प्रतः उसे यहां दिया जा रहा है :
कल्पसूत्रस्थ स्थविरावली १. प्रार्य सुधर्मा
६. प्रार्य सुस्थित-सुप्रतिबुद्ध २. ॥ जम्बू
१०. , इन्द्रदिन्न ३. . , प्रभव
११. , दिन , शय्यंभव
१२. , सिंहगिरि ५. , यशोभद्र
१३. , वज्र ६. , संभूतविजय-भद्रबाहू १४. , रथ ७. , स्थूलभद्र
१५. , पुष्यगिरि ८. ,, सुहस्ती
१६. , फल्गुमित्र ' तत्र सुहस्तिनः सुस्थित - सुप्रतिबुद्धादिक्रमेणावलिका यथा 'दसासु' तथैव द्रष्टव्या, न तयेहाधिकारः, महागिर्यावलिकयेहाधिकारः ।
[नंदी वृत्ति (श्री पुण्यविजयजी द्वारा संपादित), पृ० ११]
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