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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [चन्द्रगुप्त वि० मतभेद से लड़ता रहा। उसने यूनानी शासन को भारत से समाप्त कर दिया और वह स्वयं राजा बन बैठा।
इस प्रकार आज से क्रमशः दो हजार, १६ सौ, १८ सौ और १७ सौ वर्ष पूर्व हए विदेशी लेखकों की कृतियों के उपरिउद्धृत उद्धरणों से यह पूर्णरूपेण स्पष्टतः सिद्ध होता है कि ईसा पूर्व ३२७ से ३२४ अर्थात् वीर नि० सं० २०० से २०३ तक केवल चन्द्रगुप्त ही नहीं नन्द भी विद्यमान था और गंगा दरिया तथा भारत के पूर्वी क्षेत्रों पर नन्द का शासन था।
- विदेशी लेखकों की कृतियों में इन महत्वपूर्ण विवरणों के पश्चात् और भी अनेक महत्वपूर्ण प्रमाण मिलते हैं, जिनमें चन्द्रगुप्त को भारत का सार्वभौम सत्तासम्पन्न शासक बताया गया है ।
यह तो एक निर्विवाद तथ्य है कि सिकन्दर की मृत्यु के पश्चात् सिकन्दर के साम्राज्य का उसके सेनापतियों ने परस्पर बंटवारा किया और उनमें संघर्ष चलता रहा । सिकन्दर के उन सेनापतियों में से सेल्यूकस ने सिकन्दर की मृत्यु के कुछ वर्ष पश्चात् ईरान तक अपने राज्य का विस्तार किया। इसके पश्चात् सेल्यूकस भारत की ओर बढ़ा और सिकन्दर द्वारा विजित भारतीय प्रदेशों पर पुनः अपना प्राधिपत्य स्थापित करने का प्रयास करने लगा। उसने अनेक बार बड़ी शक्तिशाली सेना ले कर भारत के उत्तरपश्चिमी भाग पर आक्रमण किये, किन्तु उस समय तक चन्द्रगुप्त मौर्य भारत में एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना कर चुका था, अतः चन्द्रगुप्त के समक्ष यूनानी सेना एक बार भी नहीं टिक सकी
और सेल्यूकस को भारत के विरुद्ध किये गये अपने सभी सैनिक अभियानों में हर वार पराजय का मुंह देखना पड़ा। चन्द्रगुप्त ने ई० पू० ३०४ में (नन्दवंश का अन्त कर राजा बनने के ८ वर्ष पश्चात् वीर निर्वाण सं० २२३ में) सेल्यूकस को करारी हार दी जिसके परिणामस्वरूप सेल्यूकस को चन्द्रगुप्त के साथ संधि करनी पड़ी। विदेशी लेखक प्लूटार्क अपनी कृति "लाइव्स" के ४२वें अध्याय में इस संधि का उल्लेख अपने ढंग से इस प्रकार करता है :
___ "इसके कुछ ही समय पश्चात् सेन्ड्रोकोट्टस ने जो उसी समय राजसिंहासन पर बैठा था, सेल्यूकस को ५०० हाथी भेंट किये और ६,००,००० की सेना ले कर सारे भारत को अपने अधीन कर लिया।"
इन सब ऐतिहासिक घटनाओं के पर्यालोचन से यह तथ्य प्रकट होता है कि वीर निर्वाण गंवत् २०० में जब सिकन्दर ने भारत पर अाक्रमण किया तो उस समय देश की रक्षार्थ चन्द्रगुप्त ने यूनानियों से नि० सं० २०४-५ तक लोहा लिया। यूनानी शासन को भारत से समाप्त करने के पश्चात् चन्द्रगुप्त ने चाणक्य के नवावधान में शक्तिशाली सेना का मंगठन करना प्रारम्भ किया। धननन्द जैसे शक्तिशाली राजा मे युद्ध करने के लिये एक मणक्त सेना मुगठित करने में पर्याप्त समय लगा होगा। मैन्य संगठन के पश्चात् चन्द्रगुप्त ने पाटलीपुत्र पर आक्रमण
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