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विसंभोग का प्रारम्भ ]
दशपूर्वघर - काल : श्रार्य महागिरि-सुहस्ती
३. वीर नि० सं० २५८ से २८३ तक मौर्य सम्राट् अशोक का शासनकाल रहा और इसके पश्चात् संप्रति का शासनकाल प्रारम्भ हुआ ।
इन ऐतिहासिक तथ्यों के प्रकाश में विचार करने पर यही प्रकट होता है कि मौर्य सम्राट् सम्प्रति का शासनकाल वीर नि० सं० २८३ से पूर्व किसी भी दशा में नहीं हो सकता । ऐसी स्थिति में वीर नि० सं० २४५ में स्वर्गस्थ हुए आर्य महागिरि द्वारा वीर नि० सं० २८३ के पश्चाद्वर्ती सम्प्रति के शासनकाल
सुहस्ती के साथ संभोगविच्छेद की घटना का जो निशीथ चूरिंग आदि में उल्लेख किया गया है वह संगत प्रतीत नहीं होता । संभव है इस प्रकार की घटना बिन्दुसार के शासन काल में वीर नि० सं० २३३ से २४५ के बीच में घटित हुई हो और उसे सम्प्रति के विशिष्ट प्रौदार्य को देख कर अनुमानबल से सम्प्रति के साथ जोड़ दिया गया हो । तत्कालीन घटनाक्रम के पर्यवेक्षरण से स्पष्टतः प्रकट होता है कि साधारणतया अपने समस्त शासनकाल में और विशेषतः दुर्भिक्ष आदि जैसी संकटापन्न स्थिति में प्रजावात्सल्य की प्रवृत्ति मौर्यवंशीय राजानों की विशेषता रही है । बौद्ध ग्रन्थों में उह उल्लेख उपलब्ध होता है कि बिन्दुसार अपने शासनकाल के प्रारम्भिक वर्षों में प्रतिदिन ६० हजार ब्राह्मणों को भोजन कराया करता था ।' ऐसी स्थिति में कोई प्राश्चर्य की बात नहीं कि बिन्दुसार के शासनकाल की घटना का श्रुति श्रथवा स्मृति में कहीं स्खलना के कारण सम्प्रति के शासन में घटित हुई घटना के रूप में उल्लेख कर दिया गया हो । एक के जीवन की घटना को दूसरे के जीवन की घटना से जोड़ने के अन्य भी अनेक उदाहररंग उपलब्ध होते हैं ।
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आचार्य हेमचन्द्र ने परिशिष्ट पर्व के ११वें सर्ग में सम्प्रति के जातिस्मरण ज्ञान होने में प्रार्य सुहस्ती के दर्शन को निमित्त माना है और उन्हें ही सम्प्रति के पूर्वभव सम्बन्धी गुरु मानने का उल्लेख किया है। किन्तु आगे चल कर इन्हीं प्राचार्य ने परिशिष्टपर्व में राजा सम्प्रति के राज्यकाल में ही महागिरि द्वारा सुहस्ती के साथ सांभोगिक सम्बन्धविच्छेद का उल्लेख किया है । ऐसा प्रतीत होता है कि आचार्य हेमचन्द्र ने आर्य महागिरि के जीवनकाल आदि तथ्यों की गहराई में न जा कर सरसरी तौर पर श्रार्य सुहस्ती के साथ आर्य महागिरि के उज्जयिनी जाने का और सम्प्रति के राज्यकाल में ही सांभोगिकविच्छेद का उल्लेख कर दिया है।
जहाँ तक राजा सम्प्रति को प्रतिबोध दिये जाने का प्रश्न है, प्रायः सर्वत्र यही उल्लेख मिलता है कि ग्रार्य सुहस्ती ने सम्प्रति को प्रतिबोध दिया। महागिरि • द्वारा सम्प्रति को प्रतिबोध दिये जाने का कहीं भी कोई उल्लेख उपलब्ध नहीं होता ।
" पिता सठ्ठिसंहस्सानि ब्राह्मणे ब्रह्मपक्खि के ।
भोजेसि सो पिते येव, तीरिण वस्सानि भोजयि ॥ २३ ॥
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[ महावंशो परिच्छेद ५ ]
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