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जैन धर्म का मौलिक इतिहाम-द्वितीय भाग [बिन्दुमार
मौर्य सम्राट् बिन्दुसार चन्द्रगुप्त की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र विन्दुमार भारत के निणाल साम्राज्य का स्वामी बना । विभिन्न ग्रन्थों में बिन्दुमार के विभिन्न नाम उपलब्ध होते हैं। वायुपुराण आदि पुराणग्रन्यों में उसे भद्रसार एवं वारिसार के नाम से. महावंश तथा दीपवंश नामक बौद्ध ग्रन्थों में बिन्दुसार के नाम से और यूनानी अभिलेखों एवं पुस्तकों में अमित्रचेटस और अमित्रघात के नाम से अभिहित किया. गया है।
__ वृहत्कल्पभाष्य के उल्लेखानुसार' सम्राट् वनने के पश्चात् विन्दुमार ने अपने पिता से प्राप्त साम्राज्य की सीमाओं में अभिवृद्धि की । वह बड़ा न्यायप्रिंय, दयालु और जैन धर्म में आस्था रखने वाला प्रजावत्सल सम्राट् था। अपने शासनकाल में पड़े दुष्काल के समय में उसने दानशालाएँ एवं सार्वजनिक भोजनणाला खोल कर अपनी दुष्कालपीड़ित प्रजा की मुक्तहस्त हो सहायता की। विन्दुसार के दरबार में सेल्यूकस के पुत्र ऐंटिनोकोस प्रथम की ओर से डाइमैकस नामक यूनान का एक राजदूत रहता था।
बिन्दुसार का अपर नाम अमित्रघात (शत्रुओं का संहारक) उपलब्ध होता है, इससे विद्वानों द्वारा अनुमान लगाया जाता है कि उसे काफी समय तक युद्धरत रहना पड़ा होगा और शत्रुओं पर विजय के उपलक्ष में उसने "अमित्रघात" की उपाधि धारण की होगी। बिन्दुसार के शासनकाल.के अन्तिम चरण में उसके साम्राज्य के उत्तर-पश्चिमी प्रान्त तक्षशिला में विद्रोह उठ खड़ा हुया था। उस विद्रोह को दबाने के लिये उसे एक बहुत बड़ी सेना के साथ राजकुमार प्रशोक को भेजना पड़ा।
चाणक्य की मृत्यु • छाया की तरह अपने अनन्य अनुगामी मौर्य-सम्राट् चन्द्रगुप्त की मृत्यु के पश्चात् चाणक्य ने श्रमणधर्म में दीक्षित हो प्रात्मकल्याण करने का निश्चय किया था किन्तु बिन्दुसार द्वारा बारम्बार आग्रह एवं अनुनय-विनय किये जाने पर उसने कुछ समय तक महामात्य पद पर कार्य करना स्वीकार किया।
अहर्निश मगध साम्राज्य के महामात्य पद की प्राप्ति के स्वप्न देखने वामा सुबन्धु नामक एक अमात्य राजा, राज्य और प्रजा पर चारणक्य के वर्चस्व एवं सर्वतोमुखी प्रभाव को देख कर मन ही मन चाणक्य से जलने लगा। उसने यथावसर येन-केन-प्रकारेण बिन्दुसार को चाणक्य के विरुद्ध भड़काना प्रारम्भ किया । एक दिन सुबन्धु ने बिन्दुसार के समक्ष उसकी माता की मृत्यु की घटना का अतिरंजित रूप में इस ढंग से चित्रण किया कि मानो चाणक्य ने ही उसकी (बिन्दुसार की माता की) हत्या की हो । इस प्रकार बिन्दुसार के मस्तिष्क चाणक्य के प्रति मनोमालिन्य उत्पन्न करने में अन्ततोगत्वा मुबाधु को सफलता 'वृहत्कल्पभाष्य, गाथा ११२७ । निणीय भाष्य हरिल, मा. ४. १२१
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