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चन्द्रगुप्त वि० मतभेद] दशपूर्वधर-काल : प्रायं स्थूलभद्र पर यूरोपीय लेखकों ने भारत पर अलेक्जेण्डर के आक्रमणकाल की घटनाओं के विवरण समय-समय पर अपनी कृतियों में दिये हैं। उनसे यह निर्विवाद रूपेण सिद्ध होता है कि सिकन्दर के आक्रमण के समय चन्द्रगुप्त विदेशी आक्रान्ता से देश की रक्षार्थ लड़ा था और उस समय तक मगध पर नन्द का राज्य था। उन यूरोपीय लेखकों में से चार लेखकों की रचनाओं में से एतद्विषयक कुछ उद्धरण यहां प्रस्तुत किये जा रहे हैं :
(१) ईसा से ३६ वर्ष पूर्व तक जीवित डियोडोरस ने मेगस्थनीज की. रचनाओं के आधार पर लिखा है :
"पोरस ने सिकन्दर को सूचना दी कि गंगादिराई का राजा (नन्द) बिल्कुल दुश्चरित्र शासक है, जिसका कोई सम्मान नहीं करता और उसे लोग नाई की संतान समझते हैं।"
(२) ईसा की पहली शताब्दी के यूरोपीय लेखक कर्टियस ने लिखा है :
"पोरस (भारतीय राजा जिसे सिकन्दर ने झेलम की लड़ाई में पराजित किया और जो उस समय उस प्रदेश का सबसे महान् व्यक्ति था) ने सिकन्दर को बताया कि वर्तमान राजा (नन्द) न केवल ऐसा आदमी है जिसकी मूलतः कोई प्रतिष्ठा नहीं थी बल्कि उसकी स्थिति नीचतम थी । उसका पिता वास्तव में नाई था, जो चोरी छिपे रानी का प्रेमी बन गया और उसने छल से राजा का वध करवा दिया। फिर राजकुमारों के अभिभावक के रूप में काम करने के बहाने उसने सारी सत्ता अपने हाथ में कर ली और सारे अल्पवयस्क राजकुमारों की हत्या करवा दी, उसके बाद उसके संतान हुई जो वर्तमान राजा है । जिससे उसकी प्रजा घृणा करती है या उसे शूद्र समझती है।"
(३) लगभग ४५ से १२५ ई० सन् में हुए प्लूटार्क नामक लेखक ने अपनी "लाइव्स" (जीवनियां) नामक रचना के ५७वें से ६७वें अध्यायों में सिकन्दर के जीवन की घटनाओं को देते हुए लिखा है :
__ "सैंड्रोकोट्टस (चन्द्रगुप्त) जो उस समय नवयुवक ही था, स्वयं सिकन्दर से मिला था और बाद में वह कहा करता था कि सिकन्दर बड़ी आसानी से पूरे देश पर (गंगादिराई तथा प्रासाई देश पर, जिस पर नन्द राजा का शासन था) अधिकार कर सकता था क्योंकि वहां का राजा स्वभावतः दुष्ट था और उसका जन्म नीच कुल में हुआ था और इसीलिये उसकी प्रजा उसे घृणा तथा तिरस्कार की दृष्टि से देखती थी।"
(४) ईसा की दूसरी शती में हुए यूरोपीय लेखक जस्टिन की रचना "एपिटोम" (सारसंग्रह) का एतद्विषयक उद्धरण अविकल रूप से पहले दिया जा चुका है, जिसमें उसने स्पष्ट रूप से लिखा है कि चन्द्रगुप्त ने डाकूत्रों का दल संगठित कर के भारतवासियों में यूनानी शासन के विरुद्ध विद्रोह की आग भड़काई तथा वह युद्ध के मैदानों में एक जंगली हाथी पर सवार हो कर यूनानियों
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