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जैन धर्म का मौलिक इतिहास - द्वितीय भाग [ चन्द्रगुप्त वि० मतभेद
५. प्रलिकसुन्दर - एपिरस का अलेक्जेण्डर, ( ई० पू० २५५ तक जीवित ) । '
अशोक के राज्याभिषेक के समय के सम्बन्ध में इस ग्रन्थमाला के प्रथम भाग में बताया जा चुका है कि उसका राज्याभिषेक ई० पू० २६६ में हुआ । इस हिसाब से अशोक का यह तेरहवां श्रभिलेख ई० पूर्व २५६ में लिखा गया । ऊपर बताये हुए पांचों यूनानी राजा इस अभिलेख के लेखन - समय में जीवित थे यह उनके सामने दी हुई तिथियों से स्पष्ट हो जाता है ।
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वीर निर्वारण संवत् २१५ अर्थात् ई० पू० ३१२ में चन्द्रगुप्त ने नन्दवंश को समाप्त कर उसके राज्य पर अधिकार किया । ३१२ ई० पूर्व चन्द्रगुप्त के राज्यासीन होने के काल और २६६ ई० पू० अशोक के राज्याभिषेक काल में ४३ वर्ष का अन्तर रहा । इसमें से १८ वर्ष चन्द्रगुप्त का और २५ वर्ष बिन्दुसार का मिलाकर कुल ४३ वर्ष का इन दोनों का शासनकाल हो गया ।
इन सव प्रबल प्रमारणों से पूर्णरूपेरण यह सिद्ध हो जाता है कि जैन मान्यतानुसार चन्द्रगुप्त ने वीर निर्वारण संवत् २१५ तदनुसार ई० पू० ३१२ में नन्द राजवंश को समाप्त कर पाटलीपुत्र में मौर्य राजवंश की स्थापना की । प्रायं स्थूलभद्र का शिष्य-परिवार
आर्य स्थूलभद्र का शिष्य परिवार यों तो बड़ा विशाल था पर उन शिष्यों में अतिशय प्रतिभासम्पन्न निम्नलिखित दो शिष्य थे :
१. श्रार्यं महागिरी एलापत्यगोत्रीय श्रीर
२. श्रार्य सुहस्ती, वाशिष्ठगोत्रीय
श्रयं महागिरि और प्रार्य सुहस्ती
भगवान् महावीर के सातवें पट्टधर एवं आठवें प्राचार्य स्थूलभद्र के पश्चात् वें प्राचार्य प्रार्य महागिरि और १०वें प्राचार्य सुहस्ती हुए ।
६. श्रायं महागिरि
महागिरि का गोत्र एलापत्य था । आाप ३० वर्ष गृहस्थ पर्याय में रहे । श्रापकी सामान्य व्रतपर्याय ४० वर्ष, प्राचार्यकाल ३० वर्ष, सम्पूर्ण चारित्र पर्याय ७० वर्ष और पूर्ण आयु १०० वर्ष थी । वीर निर्वारण सं० २४५ में प्रापका स्वर्गवास हुआ ।
१०. प्रार्य सुहस्ती
सुहस्ती ३० वर्ष की अवस्था में दीक्षित हुए। प्रापकी सामान्य व्रतपर्याय २४ वर्ष, प्राचार्यकाल ४६ वर्ष, कुल चारित्रपर्याय ७० वर्ष और पूर्ण आयु १०० वर्ष थी। आपका गोत्र वाशिष्ठ था। वीर नि० सं० २६१ में आपका स्वर्गगमन हुआ ।
चन्द्रगुप्त मौर्य और उसका काल (डा. राधाकुमुद मुकर्जी), पृ० ७१-७२
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