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एक विकट समस्या] दशपूर्वधर-काल : प्रार्य स्थूलभद्र
अपने शिप्य के शुभ्र मुखमण्डल पर निराशा की हल्की सी काली छाया देख कर प्राचार्य भद्रबाह ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा - "हताश न हो सौम्य ! मैं तुम्हें शेष पूर्वो का अध्ययन बहुत शीघ्र ही करवा दूंगा।"
__ महाप्राण ध्यान की परिसमाप्ति होते-होते प्राचार्य भद्रबाहु ने प्रार्य स्थूलभद्र को दो वस्तु कम दश पूर्वो का ज्ञान करवा दिया। ध्यान के समाप्त होते ही प्राचार्य भद्रबाहु ने अपने शिष्यसंघ सहित नेपाल से पाटलिपुत्र की ओर विहार किया। महान् प्राचार्य श्रुतकेवली भद्रबाहु के शुभागमन का समाचार सुन कर पाटलिपुत्र के नागरिक हर्ष से फूले नहीं समाये । हजारों नागरिकों, सामन्तों और श्रेष्ठियों ने सम्मुख जाकर उस महान् योगी के भावपूर्ण स्वागत एवं दर्शन, वन्दन तथा उपदेश श्रवण से अपने पापको कृतकृत्य किया। नगर के बाहर उद्यान में पहुंच कर प्राचार्य भद्रबाहु ने उद्वेलित सागर की तरह उमड़े हुए सुविशाल जनसमूह के समक्ष अध्यात्म ज्ञान से प्रोतःप्रोत धर्मोपदेश दिया । आचार्यश्री की पातकप्रक्षालिनी जगद्धितकारिणी अमृत-वारणी को सुन कर अनेक भव्यों ने यथाशक्ति सर्वविरति और देशविरति व्रत ग्रहण किये।
__ प्राचार्य भद्रबाह और आर्य स्थूलभद्र आदि महर्षियों के दर्शन हेतु स्थूलभद्र की यक्षा आदि सातों बहनें साध्वियां भी नगर के बाहर उस उद्यान में पहुंची। प्राचार्यश्री को प्रगाढ़ श्रद्धा से वन्दन करने के पश्चात् महासती यक्षा ने हाथ जोड़ कर अति विनीत स्वर में प्राचार्यश्री से पूछा - "भगवन् ! हमारे ज्येष्ठ बन्धु आर्य स्थूलभद्र कहां विराजते हैं ?"
आचार्यश्री ने फरमाया- “आर्य स्थूलभद्र उस ओर के जीर्ण-शीर्ण खण्डहरप्राय चैत्य में स्वाध्याय कर रहे होंगे।"
__ प्रार्या यक्षा आदि सातों बहनें अनेक पूर्वो का ज्ञान उपाजित कर वर्षों पश्चात आये हुए अपने ज्येष्ठ बन्धु को देखने की तीव्र उत्कण्ठा लिये प्राचार्यश्री द्वारा इंगित खण्डहर की ओर बढ़ीं। दूर से ही अपनी बहनों को प्राती हुई देख कर आर्य स्थूलभद्र के मन में अपनी बहिनों को अपनी विद्या का चमत्कार दिखाने का कुतूहल उत्पन्न हुआ। उन्होंने तत्क्षरण विद्या के प्रभाव से घनी और लम्बी केसर युक्त अति विशालकाय सिंह का स्वरूप बना लिया। उस जीर्ण चैत्य के अन्दर पहुंच कर साध्वियों ने देखा कि वहां एक भयावह सिंह बैठा हुआ है और उनके अग्रज आर्य स्थूलभद्र वहां कहीं दृष्टिगोचर नहीं हो रहे हैं, तो वे तत्क्षण
आचार्यश्री के पास लौट कर कहने लगीं- "भगवन् वहां तो एक केसरी बैठा हुआ है, प्रार्य स्थूलभद्र वहां कहीं दृष्टिगोचर नहीं हो रहे हैं। हम इस आशंका से आकुल-व्याकुल हो रही हैं कि कहीं उन होनहार विद्वान् श्रमण को सिंह ने तो नहीं खा डाला है ?" ____ आचार्यश्री ने ज्ञानोपयोग से तत्क्षण वस्तुस्थिति को समझ कर आश्वासन भरे स्वर कहा- "वत्साप्रो ! लौट कर देखो, अब वहां कोई सिंह नहीं अपितु
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