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चन्द्रगुप्त का परिचय] दशपूर्वघरःकाल : प्रार्य स्थूलभद्र खदेड़ने में सफलता प्राप्त की। चन्द्रगुप्त उस राजनैतिक विप्लव के समय न तो किमी राज्य का शासक ही था और न उसके पास कोई नियमित सेना ही थी। उसने देश की ग्रान-बान पर मर मिटने की साध रखने वाले युवकों को संगठित कर इस अति दुष्कर कार्य को सम्भव बनाया।
अपने देश में विदेशी शासन का अन्त करने के पश्चात् चन्द्रगुप्त ने अपने अभिभावक अथवा भाग्यविधाता चाणक्य के आदेशानुसार पाटलिपुत्र पर अधिकार करने हेतु अनवरत परिश्रम द्वारा एक शक्तिशाली सेना का संगठन किया। यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि मगध जैसे उस समय के सर्वाधिक शक्तिशाली राज्य की सुसंगठित सेनाओं से लोहा लेने के लिये एक सशक्त सेना तैयार करने में चन्द्रगुप्त और चाणक्य को पर्याप्त समय लगा होगा । पर्याप्त शक्तिशाली सेन के मंगठित हो जाने और सभी प्रकार की सैनिक तैयारियां सम्पन्न हो जाने पर चारणक्य ने चन्द्रगुप्त को पाटलिपुत्र पर प्रबल वेग के साथ आक्रमण करने का आदेश दिया । चन्द्रगुप्त ने चारणक्य के आदेश का पालन करते हुए तत्काल अपनी सेना के साथ पाटलिपुत्र की ओर रणप्रयाण किया। भारत पर विदेशी याक्रमण के समय से ही धननन्द सावधान हो चुका था। कहीं सिकन्दर उसके राज्य पर भी आक्रमण न कर दे, इस आशंका से उसने अपनी फौजों को सुसंगठित कर रखा था। चन्द्रगुप्त द्वारा किये जाने वाले इस अप्रत्याशित आक्रमण की सूचना मिलते ही धननन्द अपनी विशाल वाहिनी के साथ चन्द्रगुप्त से युद्ध करने के लिये युद्धस्थल में आ डटा । इस सैनिक अभियान में चाणक्य भी चन्द्रगुप्त के साथ था। दोनों सेनाएं बड़ी वीरता के साथ लड़ीं किन्तु मगध की सुसंगठित और विशाल सेना के सम्मुख चन्द्रगुप्त की सेना के पैर उखड़ गये । चन्द्रगुप्त की सेना में भगदड़ मचते ही धननन्द की सेना ने द्विगुणित वेग से उस पर प्रबल अाक्रमण किया । परिणाम यह हुआ कि चन्द्रगुप्त की सेना के सिपाही बहुत बड़ी संख्या में मगध की सेना द्वारा मौत के घाट उतार दिये गये और अन्ततोगत्वा चन्द्रगुप्त और चाणक्य को अपने प्राणों की रक्षा के लिये युद्धस्थल छोड़ कर भागना पड़ा। धननन्द के आदेश से मगध के सैनिकों द्वारा चन्द्रगुप्त और चाणक्य का पीछा किया गया। उस संकटापन्न भयानक स्थिति में भी प्रत्युत्पन्नमती चाणक्य ने चन्द्रगुप्त एवं स्वयं के प्राणों की बड़ी ही दक्षता से रक्षा की।
धननन्द ने अपने राज्य में घोषणा करवा दी कि जो कोई व्यक्ति चन्द्रगुप्त एवं चाणक्य को जीवित अथवा मृत अवस्था में उसके समक्ष प्रस्तुत करेगा उसे बहुत बड़ा पारितोषिक तथा राजकीय सम्मान दिया जायगा । ऐसी स्थिति में चाणक्य और चन्द्रगुप्त के लिये पग-पग पर प्रारणों का संकट था। उधर मगध का समस्त गुप्तचर विभाग एवं सैन्य संगठन चाणक्य एवं चन्द्रगुप्त को पकड़ने के लिये धननन्द के समस्त साम्राज्य में सक्रिय था पर चतुर चाणक्य चन्द्रगुप्त को साथ लिये विकट वनों, दुर्लध्य पर्वतों और वेगवती नदियों को छद्मवेष में पार करता चला जा रहा था।
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