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४३२ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग
ग्रामीण महिला से चाणक्य को शिक्षा नन्दवंश को समाप्त करने की अपनी प्रतिज्ञा को पूर्ण करने हेतु जीवित रहने का दृढ़ संकल्प हृदय में पाये हुए चाणक्य एक रात्रि में विश्राम के लिये चन्द्रगुप्त के साथ एक एकांत झोंपड़ी में ठहरा । उस वृद्ध महिला ने एक थाली में गरम-गरम राब डाल कर अपने बालकों के सम्मुख रख दी। उन बालकों में से एक ने राव खाने के लिये थाली के बीच में हाथ डाला और हाथ जल जाने के कारण कराह उठा । उस वृद्धा ने खीझ भरा उपालम्भ देते हुए उस बालक मे कहा- "मेरे बच्चे ! तू भी चारणक्य की तरह नितांत मूढ़ ही नजर पाता है।'
वृद्धा की बात सुन कर चाणक्य चौंक उठा । उसने वृद्धा से पूछा - "चाणक्य ने ऐसी कौनसी मूर्खता की है, जिसके कारण तुम इस बालक को उसके समान मूर्ख वता रही हो?" ___वृद्धा ने उत्तर दिया- "पान्थ ! जिस प्रकार चाणक्य ने. मगध के सीमावर्ती क्षेत्रों को विजित किये बिना सहसा विशाल साम्राज्य के मध्यभाग में स्थित पाटलीपुत्र नगर पर आक्रमण कर के भयंकर पराजय के साथ प्रारणसंकट मोल लेने की मूर्खता की उसी प्रकार यह मूर्ख बालक भी थाली के किनारों के प्रास-पास की राब न खा कर गरमागरम राब के बीच में हाथ डाल कर अपना हाथ जला चुका है।"
चाणक्य ने उस ग्रामीण वृद्धा द्वारा दिये गये ताने से शिक्षा ग्रहण की। मन ही मन वृद्धा का उपकार मानते हुए उसने रात भर जागते रह कर अपना भावी कार्यक्रम निर्धारित किया और सूर्योदय से पूर्व ही अज्ञात स्थान के लिये वहां से प्रस्थान कर दिया।
अपने बुद्धि-कौशल से चाणक्य ने चन्द्रगुप्त की ओर सरपट दौड़ से प्राते हुए नन्द के घुड़ सवारों को मौत के घाट उतार कर अपने तथा चन्द्रगुप्त के प्राग्गों की रक्षा की। अनेक संकटों का सामना करने के पश्चात् चाणक्य चन्द्रगुप्त के साथ मगध की सीमाओं से सकुशल बाहर निकलने में सफल हुमा । निरापद स्थान पर पहुंचने के पश्चात् चाणक्य ने पुनः संन्य-संगठन का कार्य प्रारम्भ किया। प्रव की बार चाणक्य ने हिमालय की तलहटी के राजा पर्वतक के साथ मित्रता की और उसे नन्द का प्राधा राज्य देने का विश्वास दिला कर धननन्द के राज्य पर प्राक्रमण करने के लिये राजी कर लिया। कुछ ही समय में चन्द्रगुप्त ने भी एक सशक्त सेना सुगठित कर ली। चाणक्य के निर्देश के अनुसार चन्द्रगुप्त पीर पर्वतक की सेनाओं ने सम्मिलित रूप से मगध राज्य पर पाक्रमण किया और मगध के एक के पश्चात् दूसरे सीमावर्ती क्षेत्रों एवं नगरों पर अधिकार करते हुए अन्ततोगत्वा पाटलिपुत्र पर आक्रमण कर दिया । चाणक्य की इस नवीन रणनीति के कारण इस बार के युद्ध में शीघ्र ही मगध का बहुत बड़ा भाग चन्द्रगुप्त तथा पर्वतक के अधिकार में प्रा जाने के कारण धन जन. रसद प्रादि की दृष्टि में
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