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नामसाम्य से हुई भ्रान्ति] श्रुतके वली-काल : प्राचार्य श्री भद्रबाहु
३५६ ही व्यक्ति मानने का भ्रम भी काफी प्राचीन समय से विद्वानों में चला आ रहा है। इस प्रकार की भ्रान्त धारणा का जन्म सर्वप्रथम किस समय और किस विद्वान् के मस्तिष्क में उत्पन्न हुअा यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता।
बहत प्राचीन समय से श्वेताम्बर परम्परा में यह मान्यता चली आ रही है कि चतुर्दश पूर्वधर प्राचार्य श्री भद्रबाह स्वामी के द्वारा ही छेदसूत्रों की तथा नियुक्तियों की भी रचना की गई थी। सर्वप्रथम संभवतः डा० हर्मन जैकोबी ने ई० सं० १६३१ में इस मान्यता की समीक्षा करते हुए प्राचार्य हेमचन्द्रकृत "परिशिष्ट पर्व" के इन्ट्रोडक्शन में लिखा :
“There are ten Sutras to which Bhadra Bahu, a late namesake of the sixth patriarch, has written Niryukties, i.e., systematic expositions of the subject of Sutra to which they belong."
(Parisista Parva, Introductory, page 6] डा० हर्मन जैकोबी ने इससे आगे पृ० ७ पर और लिखा है :
The author of the Niryukties Bhadraba hu is identified by the Jains with the patriarch of that name who died 170 A. V. There can be no doubt that they are mistaken. For the account of seven schisms (Ninhaga) in the Avashyaka Niryukti VIII 56-100 must-have been written 584 and 609 of the Vira Era. There are the dates of the 7th and 8th schisms of which only the former is mentioned in the Niryukti. It is therefore, certain that the Niryukti was composed before the 8th schism 609 A.V.
डा० हर्मन जैकोबी द्वारा इस तथ्य के प्रकाश में लाये जाने के पश्चात् अनेक अन्य विद्वानों ने भी इस दिशा में अनुसन्धान और छानबीन करना प्रारम्भ किया, जिसके परिणामस्वरूप अनेक विचारणीय तथ्य विद्वानों के सामने माये ।
छेवसूत्रकार श्रुतकेवली भाबाहु इस तथ्य को सभी विद्वान् एक मत से स्वीकार करने लगे हैं कि छेदसूत्रों के कर्ता प्रसंदिग्ध रूप से चतुर्दश पूर्वधर प्राचार्य भद्रबाहु ही हैं । यद्यपि छेद सूत्रों के प्रादि, मध्य अथवा अन्त में कहीं पर भी ग्रन्थकार के नाम का उल्लेख नहीं है फिर भी इनके पश्चाद्वर्ती ग्रन्थकारों ने अपनी कृतियों में जो उल्लेख किये हैं, उनके प्राधार पर यह निश्चित रूप से सिद्ध होता है कि छेदसूत्रों के कर्ता चतुर्दश पूर्वधर प्राचार्य भद्रबाहु स्वामी ही हैं । 1 वीरमोक्षावर्षशते, सप्तत्यने गते सति । .
भद्रबाहुरपि स्वामी, ययौ स्वर्ग समाधिना ।।११२।। [परिशिष्ट पर्व, सर्ग ६]
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