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श्रुतकेवली-काल : प्राचार्य श्री भद्रबाहु
३७१ से अंश तत्पश्चादवर्ती काल में विलुप्त हो गये उनमें से सबके सम्बन्ध में न सही पर कम से कम.दो-चार अंशों के सम्बन्ध में तो थोड़े बहत तथ्य इन नियुक्तियों में हमें आज भी अवश्य देखने को मिलते । पर वस्तुस्थिति इससे बिल्कुल विपरीत ही दृष्टिगोचर हो रही है।
इन सब प्रमाणों के अतिरिक्त एक बड़ा महत्त्वपूर्ण और विचारणीय प्रश्न इस सन्दर्भ में हमारे समक्ष एक पेचीदा पहेली के रूप में यह उपस्थित होता है कि भीषण दुष्कालों एवं अनवरत गति से चले आ रहे ऋमिक स्मृतिहास के परिणामस्वरूप श्रुतकेवली भद्रबाह के समय में जो एकादशांगी का वृहतस्वरूप विद्यमान था उसको तो श्रमण-पीढ़ियां यथावत् स्वरूप में सुरक्षित नहीं रख सकी और उनके द्वारा (श्रुतकेवली भद्रबाह द्वारा) निर्मित नियुक्तियों को आज तक सुरक्षित रख सकीं, क्या यह बात किसी निष्पक्ष विचारक के गले उतर सकती है ? कदापि नहीं।
निष्कर्ष उपर्युक्त विस्तृत विवेचन में प्रमाण पुरस्सर जो विपुल सामग्री प्रस्तुत की गई है उससे भली-भांति निर्विवादरूप से यह सिद्ध होता है कि ये नियुक्तियां अन्तिम चतुर्दश पूर्वधर आचार्य भद्रबाहु की कृतियां नहीं, किन्तु भद्रबाहु नाम के किसी अन्य प्राचार्य की हैं । यदि ये उनकी कृतियां होती तो वे न स्वयं को (चतुर्दश पूर्वधर प्राचीन गोत्रीय प्रा० भद्रबाहको) ही नमस्कार करते और न अपने शिष्य प्रार्य स्थूलभद्र के लिये "भगवं पि एलभद्दो" - जैसे अपने पूज्य के लिये प्रयुक्त किये जाने वाले शब्दों का प्रयोग कर उनका गुणगान ही करते । इसके अतिरिक्त इन नियुक्तियों में श्रुतकेवली भद्रबाह से ४२० वर्ष पश्चात् हए अन्योगों के पृयक्करण का, वीर नि० संवत् ६०६ तक की मुख्य घटनाओं का एवं पश्चाद्वर्ती प्राचार्यों का उल्लेख है, तथा आर्य वचस्वामी को नियुक्तिकार द्वारा नमस्कार किया गया है। अतः यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि वर्तमान में उपलब्ध नियुक्तिया श्रुतकेवली आचार्य भद्रबाहु द्वारा नहीं अपितु उनके पश्चाद्वर्ती भद्रबाहु नामक अन्य किसी भाचार्य द्वारा निमित्त की गई हैं।
नियुक्तिकार कौन __चतुर्दश पूर्वधर प्राचार्य भद्रबाह उपलब्ध नियुक्तियों के कर्ता नहीं हैं, यह सिद्ध कर दिये जाने के पश्चात् यह प्रश्न उपस्थित होता है कि आखिर ये नियुक्तियां किसकी कृतियां हैं ? प्रश्न वस्तुतः बड़ा जटिल है। इसको सुलझाने का प्रयास करने से पहले हमें यह देखना होगा कि भद्रबाह नाम के कितने प्राचार्य हुए हैं और वे किस-किस समय में हुए हैं।
दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही परम्परामों के ग्रन्थों एवं शिलालेखों को देखने से ज्ञात होता है कि भद्रवाह कई हए हैं। दिगम्बर परम्परा में तो विभिन्न समय में भद्रबाहु नाम के ६ आचार्य हुए हैं, किन्तु श्वेताम्बर परम्परा के ग्रन्थों में • भद्रबाह नाम के दो प्राचार्यों के होने का ही उल्लेख उपलब्ध होता है। एक तो
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