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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग (उपकेशगच्छ प्रयत्न निष्फल रहे और कुमार को मृत समझ कर दाहसंस्कार के लिये स्मशान की ओर ले चले। वहां प्राचार्य रत्नप्रभसूरि का चरणोदक सींचने पर कुमार का जहर उतर गया और उसने नवीन जीवन प्राप्त किया। शोक में डूबा हुमा राजपरिवार और समस्त उपकेश नगर पुनः आनन्दित हो उठा।
इस अद्भुत घटना से प्रभावित हो कर राजा, मन्त्री, उनके परिजनों और पौरजनों आदि ने बहत बड़ी, संख्या में जैनधर्म स्वीकार किया और उन सब के प्रोसियां निवासी होने के कारण उन नये जैन बने लोगों की "पोसवाल" नाम से प्रसिद्धि हुई।
__यह भी कहा जाता है कि राज्य की अधिष्ठायिका चामुण्डा देवी को भीजिसे कि - बलि दी जाती थी, प्राचार्य रत्नप्रभ ने उपदेश देकर सम्यक्त वधारिणी बनाया और "सच्चिका" नाम देकर उसे प्रोसवालों की कुलदेवी के रूप में प्रतिष्ठापित किया। देवी ने केवल पशुओं की बलि लेना ही नहीं छोड़ा अपितु लाल रंग के फूल भी वह पसंद नहीं करती थी।
उपकेशगच्छ पट्टावली में प्राचार्य रत्नप्रभ के इस प्रकार के अन्य अनेक चमत्कारों की घटनाओं का उल्लेख किया गया है। कहा जाता है कि आपने १,८०,००० अजैनों को जैन धर्मावलम्बी बनाया और वीर नि० सं० ८४ में स्वर्ग प्राप्त किया।
रत्नप्रभसूरि के पश्चात् यक्षदेवसूरि आदि के क्रम से उपकेशगच्छ की प्राचार्य परम्परा अद्यावधि अविच्छिन्न रूप से चलती हुई बताई गई है। द्विवन्दनिक गच्छ और तपारत्न शाखा इन्हीं प्राचार्य यक्षदेव के शिष्य उदयवर्द्धन से निकली कही जाती है।
प्राचार्य भद्रबाहु का शिष्यपरिवार प्राचार्य भद्रबाहु के निम्नलिखित ४ प्रमुख शिष्य थे:१. स्थविर गोदास
२. स्थविर अग्निदत्त ३. स्थविर यज्ञदत्त और
४. स्थविर सोमदत्त ये चारों शिष्य काश्यपगोत्रीय थे। स्थविर गोदास से गोदास-गण प्रचलित हुआ, जिसकी निम्नलिखित चार शाखाएं थीं :१. तामलित्तिया,
२. कोडीवरिसिया ३. पंडुवद्धणिया (पोंडवद्धणिया) और ४. दासी खब्बडिया
' विशेष जानकारी के लिये देखें भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास ।
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