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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [छेद० श्रुत मावाहु "अस्य चातीव गम्भीरार्थतां सकल साधु-श्रावकवर्गस्य नित्योपयोगितां च विज्ञाय चतुर्दश-पूर्वधरेण श्रीमद्भद्रबाहुनतद्व्याख्यानरूपा "अभिनिबोहियनाणं" इत्यादि प्रसिद्ध ग्रन्थरूपा नियुक्तिकृत्ता।" ।
५. मलयगिरि ने बृहत्कल्पपीठिका की टीका, पत्र २ पर लिखा है :
साधूनामनुग्रहाय चतुर्दशपूर्वधरेण भगवता भद्रबाहुस्वामिना कल्पसूत्र, व्यवहारसूत्र चकारि, उभयोरपि च सूत्रस्पशिक नियुक्तिः ।"
.. ६. वृहत्कल्पपीठिका की श्री क्षेमकीतिसूरि कृत टीका के पत्र १७७ पर उल्लेख है कि
"श्रीमदावश्यकादिसिद्धान्तप्रतिबद्धनियुक्तिशास्त्र संसूत्रणसूत्रधार"....... श्री भद्रबाहुस्वामी....""कल्पधेयनामाध्ययनं नियुक्तियुक्त नियूंढ़वान् ।" - ७. मुनि सुन्दरसूरि ने 'गुर्वावली' में चतुर्दशपूर्वधर प्राचार्य भद्रबाहु स्वामी
और 'उपसर्गहरस्तोत्र' के रचयिता भद्रबाहु को एक ही महापुरुष बताते हुए लिखा है :
अपश्चिमः पूर्वभृतां द्वितीयः, श्री भद्रबाहुश्च गुरू: शिवाय । कृत्वोपसर्गादिहरस्तवं यो, ररक्ष संघं धरणार्चितांह्रिः ॥१३॥ नियूँढसिद्धान्तपयोधिराप, स्वर्यश्च वीरात् खनगेन्दुवर्षे ।
८. गच्छाचार पइन्ना की वृत्ति में श्रुतकेवली भद्रबाहु और नियूंक्तिकार भद्रबाहु को एक ही व्यक्ति बताते हुए लिखा है :
"अत्थि सिरिभरवरिठे...."अह जुगप्पहाणागमो सिरिभद्दबाहुसामी. आयारांग १. सूयगडांग २. आवस्सय ३. दसवैयालिय ४, उत्तरज्झयण ५, दसा ६, कप्प ७, ववहार ८, सूरियपन्नत्ति उवंग ६, रिसिभासियारणं १० दस नियुत्तिमो काऊरण जिणसासणं पभावेऊरणं पंचमसुयकेवलिपयमणहविऊरण य समए अणसणविहाणेण तिदसावासं पत्तोत्ति ।"
उपरोक्त सभी उल्लेख प्रामाणिक प्राचार्यों द्वारा किये गये हैं। इनमें प्राचार्य शीलांक का उल्लेख सबसे प्राचीन-अर्थात् विक्रम की आठवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध अथवा नौवीं शताब्दी के प्रारम्भ का है। उपरोक्त उल्लेखों में सभी प्राचार्यों ने चतुर्दशपूर्वधर आचार्य भद्रबाहुस्वामी को ही नियुक्तिकार माना है पर अपनी इस मान्यता के समर्थन में शान्त्याचार्य के अतिरिक्त किसी भी विद्वान् प्राचार्य ने कोई युक्ति प्रस्तुत नहीं की है। साधारण तौर पर केवल यह उल्लेख मात्र किया है कि चतुर्दशपूर्वधर प्राचार्य भद्रबाहु स्वामी नियुक्तिकार थे।
शान्त्याचार्य ने चतुर्दशपूर्वधर प्राचार्य भद्रबाहु स्वामी को ही नियुक्तिकार ठहराने की अपनी मान्यता के पक्ष में यह युक्ति दी है कि उत्तराध्ययन की नियुक्ति में नियुक्तिकार भद्रबाहु स्वामी ने अपने से बहुत काल पश्चात् हुए महापुरुषों के व उनसे सम्बन्धित उदाहरण दिये हैं - उनके आधार पर कोई यह शंका न कर
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