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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [वे० परं० परिचय तित्थोगालियपइन्ना के अनुसारः - लगभग विक्रम की पांचवीं शताब्दी के प्रारम्भिक काल में रचित "तित्थोगालियपइण्णा" नामक प्राचीन ग्रन्थ में निम्नलिखित रूप से उल्लेख उपलब्ध होता है :
____ "प्राचार्य श्री सय्यंभव के सर्वगुण सम्पन्न शिष्य जसभद्र हए। जसभद्र के शिष्य यशस्वी कुल में उत्पन्न श्री संभूत हुए । तदनन्तर सातवें आचार्य श्री भद्रबाहु हुए, जिनका भाल प्रशस्त एवं उन्नत तथा भुजाएं आजानु थीं । वे धर्मभद्र के नाम से भी प्रख्यात थे। प्राचार्य भद्रबाहु चतुर्दश पूर्वधर थे। उन्होंने बारह वर्ष तक योग की साधना की और (सुत्तत्थेण निबन्धइ अत्थं अज्झयणबन्धस्स) छेदसूत्रों की रचना की।
उस समय मध्यप्रदेश में भयंकर अनावृष्टि के कारण दुष्काल पड़ा। व्रतपालन में कहीं किसी प्रकार का किंचित्मात्र भी दोष न लग जाय अथवा किसी प्रकार कर्मबन्ध न हो जाय- इस आशंका से अनेक धर्मभीरु साधुओं ने अत्यन्त दुष्कर आमरण अनशन की प्रतिज्ञाएं की और संलेखना कर समाधिपूर्वक प्रारणत्याग किये। अवशिष्ट साधुनों ने अन्यान्य प्रान्तों की ओर प्रस्थान कर समुद्र
और नदियों के तटवर्ती क्षेत्रों में विरक्त भाव से विचरण करना प्रारम्भ किया। प्रा० भद्रबाहु नेपाल पधारे और वहां योग साधना में निरत हो गये।
दुभिक्ष के समाप्त होने पर अवशिष्ट साधु पुनः मध्यप्रदेश की ओर लौटे ।
"तित्थोगालियपइण्णा" में उपर्युल्लिखित के पश्चात् पाटलीपुत्र में हुई प्रथम आगमवाचना, साधुओं को चौदह पूर्वो की वाचना देने की प्रार्थना के साथ संघ द्वारा साधुओं के एक संघाटक का भद्रबाहुस्वामी की सेवा में नेपाल भेजना, भद्रबाहुस्वामी द्वारा प्रथमतः संघ की प्रार्थना को अस्वीकार करना और अन्ततोगत्वा संभोगविच्छेद की संघाज्ञा के सम्मुख भूक कर स्थूलभद्र आदि साधुनों को वाचना देना, स्थूलभद्र द्वारा पाटलीपुत्र में यक्षा आदि आर्याओं के समक्ष अपने विद्या प्रदर्शन के कारण प्राचार्य भद्रबाहु द्वारा उन्हें अन्तिम चार पूर्वो की वाचना न देने का संकल्प, संघ द्वारा स्थूलभद्र के अपराध को क्षमा कर वाचना देने की प्रार्थना, प्राचार्य भद्रबाहु द्वारा चार पूर्वो की वाचना न देने के कारणों पर प्रकाश और अन्ततोगत्वा केवल मूलरूप से अन्तिम चार पूर्वो की भद्रबाहु द्वारा आर्य स्थूलभद्र को वाचना देने आदि का.उल्लेख किया गया है। यह सब विवरण स्थूलभद्रस्वामी के प्रकरण में यथास्थान दिया जा रहा है ।
पावश्यकरिण आवश्यकचूर्षिण में भद्रबाहु विषयक तित्थोगालियपइण्णा में उल्लिखित उपरोक्त तथ्यों में से कुछ का अति संक्षेप में उल्लेख किया गया है । ' तित्थोगालियपइण्णा, गाथासंख्या ७०० से ८०० के बीच की गाथाएं २ मावश्यकचूरिण, भाग २, पृ० १८७
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