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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [भद्रबाहु दि० परं० प्राचार्य भद्रबाह विविध क्षेत्रों में धर्म का प्रचार करते हुए एक समय अवन्ती राज्य की राजधानी उज्जयिनी पुरी के बाहर क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित उपवन में पधारे।
उस समय अवन्ती राज्य पर महाराज चन्द्रगुप्त का शासन था। वे उज्जयिनी में रहते थे। महाराज चन्द्रगुप्त एक दृढ़ सम्यक्त वी और जिनशासन के श्रद्धालु श्रावक थे। उनकी महारानी का नाम सुप्रभा था।
एक दिन प्राचार्य भद्रबाहु उज्जयिनी में घर-घर भिक्षार्थ भ्रमण करते हुए एक ऐसे घर में प्रविष्ट हुए जिसके अन्दर झोली में लेटे हुए एक शिशु के अतिरिक्त और कोई नहीं था । भद्रबाह को देखते ही वह नन्हा सा शिशु बोल उठा - भगवन् ! आप यहां से शीघ्र ही चले जाइये।
दिव्यज्ञानी भद्रबाह ने उस शिशु के अत्यन्त पाश्चर्योत्पादक वचन सुनकर तत्काल ही समझ लिया कि इस प्रकार के प्रति स्वल्पायुष्क शिशु के मुख से इस प्रकार के वचन प्रकट होने का परिणाम यह होने वाला है कि इस समस्त प्रदेश में निरन्तर १२ वर्ष तक भयंकर अनावृष्टि होगी। वे तत्क्षरण बिना भिक्षा ग्रहण किये ही उपवन की अोर ाट गये। अपराह्न वेला में उन्होंने श्रमण संघ को एकत्रित कर उसे भावी द्वादशवार्षिक दुर्भिक्ष के महान संकट से अवगत कराते हुए कहा.- "श्रमणो! जन-धन और अन्न से परिपूर्ण यह सुरम्य प्रदेश बारह वर्ष तकं अनावृष्टि और दुष्काल के कारण शून्यप्रायः होने वाला है। मेरी तो बहत ही कम प्राय अवशिष्ट रह गई है अतः मैं तो यहीं रहूंगा पर आप सब लोग लव समुद्र के तटवर्ती क्षेत्रों की ओर चले जाओ।" ।
प्राचार्य भद्रबाह के उपरोक्त वचन सुनकर महाराज चन्द्रगुप्त ने उनके पास श्रमरण-दीक्षा ग्रहण कर ली। मुनि बनने के पश्चात् चन्द्रगुप्त ने अपने गुरु से १० पूर्वो का ज्ञान प्राप्त किया और वे विषाखाचार्य के नाम से विख्यात हो श्रमण संघ के अधिपति बन गये। प्राचार्य भद्रबाहु की आज्ञानुसार श्रमण संघ इन विषाखाचार्य के साथ दक्षिणापथ के पुन्नाट प्रदेश में चला गया तथा रामिल्ल स्थूलाचार्य और स्थूलभद्र - ये तीनों अपने संघ के साथ सिन्धु प्रदेश में चले गये।
___प्राचार्य भद्रबाहु उज्जयिनी के अन्तर्गत भाद्रपद नामक स्थान में प्राकर ठहरे और वहां कई दिनों के अनशन के पश्चात् समाधिपूर्वक आयुष्य पूर्ण कर स्वर्ग सिधारे।
___ रामिल्ल, स्थूलवृद्ध (स्थूलाचार्य) और स्थूलभद्र जिस समय सिन्धु प्रदेश में पहुंचे, उस समय वहां पर भी दुष्काल का प्रभाव व्याप्त हो चुका था। सिन्धु प्रदेश के श्रद्धालु श्रावकों ने उनके सम्मुख उपस्थित होकर निवेदन किया- "महात्मन् ! भूखे लोगों की अपार भीड़ के डर से हमारे घरों में रात्रि के समय ही भोजन बनाया जाता है, अतः जब तक यह संकटकाल समाप्त न हो जाय तब तक
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