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श्वे० परं० परिचय] श्रुतकेवली-काल : प्राचार्य श्री भद्रबाहु
३३१ भी राजा के साथ था । उसी समय एक पुरुष ने वहां उपस्थित हो महाराज के समक्ष ही वराहमिहिर को हर्षभरा शुभ-संवाद सुनगया- "देव ! अभी-अभी प्रापके यहां पुत्ररत्न का जन्म हुआ है।"
यह हर्षप्रद सन्देश सुन कर महाराज न प्रसन्न हो समाचार लाने वाले व्यक्ति को अच्छा पारितोषिक दिया और पुरोहित से प्रश्न किया- "पुरोहितजी! यह बताइये कि यह तुम्हारा पुत्र किन-किन विद्यानों में पारंगत और कितनी आयुष्य वाला होगा ? इसके साथ ही साथ यह भी बताइये कि यह हमारे द्वारा सम्मानित होगा अथवा नहीं ? आज तो परम सौभाग्य की बात है कि सर्वज्ञपुत्र एवं शत्रु तथा मित्र के प्रति समान व्यवहार रखने वाले श्री भद्रबाहु और समस्त ज्योतिष्चक्र को सूक्ष्म से सूक्ष्म गति एवं उसके परिणाम के ज्ञाता तुम जैसे ज्योतिष-शास्त्र के पारगामी विद्वान् यहां विद्यमान हैं। अतः दोनों विद्वशिरोमणि विचार कर कहिये।"
निज चपल स्वभाववश वराहमिहिर ने अपने पाण्डित्य की उत्कृष्टता का प्रदर्शन करते हुए कहा- "महाराज! इस नवजात शिशु के जन्मकाल, लग्न, ग्रहमादि पर विचार करने के पश्चात् में यह कहने की स्थिति में हूं कि यह बालक शतायु, आपके द्वारा तथा आपके पुत्रों एवं पौत्रों द्वारा भी पूजित और अठारह विद्यामों का पारंगत विद्वान् होगा।"
- जैन सिद्धान्त में निमित्त-कथन का निषेध है फिर भी राजा और उपस्थित अन्य पौरजनों के अनुरोध से, रोगनिवारणार्थ कटू औषध का पिलाना भी आवश्यक होता है, इस विचार से गीतार्थशिरोमणि आचार्य । भद्रबाह ने बताया कि सातवें दिन के अन्त में इस बालक की विडाल से मृत्यु हो जायगी।
यह सुन कर वराहमिहिर बड़ा क्रुद्ध हुआ । उसने महाराज से प्रार्थना की कि यदि भद्रबाहु का कथन असत्य सिद्ध हो तो इनको कोई कठोर दण्ड दिया जाय । घर पहुंच कर वराहमिहिर ने अपने घर के चारों ओर सैनिकों का कड़ा पहरा लगा दिया। सूतिकागृह में सभी आवश्यक सामग्री का समुचित प्रबन्ध करने के पश्चात् पुत्र की रक्षार्थ धात्री को नियुक्त कर दिया । तदनन्तर विडाल के संचार को रोकने हेतु सूतिकागृह के द्वार को अन्दर की ओर से बन्द करवाकर वराहमिहिर स्वयं सूतिकागृह पर अहर्निश पहरा देने लगा।
___ इस प्रकार के कडे सुरक्षा प्रबन्धों के बीच सातवां दिन मा उपस्थित हा। ज्यों-ज्यों आशंकित संकट की घड़ी सन्निकट आती गई त्यों-त्यों सुरक्षा के प्रबन्ध और अधिक कड़े किये जाने लगे और अधिकाधिक सावधानी बरती जाने लगी। सातवें दिन के समाप्त होते-होते अकस्मात् सूतिकाग्रह के सुदृढ़ कपाटों की विडालमुखी भारी अर्गला बालक के ऊपर गिरी और उसके प्रहार से वह नन्हा सा बालक तत्काल प्राणविहीन हो गया। सारे घर में कुहराम मच गया। वराहमिहिर करण ऋदन करते हुए कहने लगा- "हायरे देव ! तुम्हारी गति
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