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प्रबन्धकोश के अनुसार] श्रुतकेवली-काल : प्राचार्य श्री भद्रबाहु
इस पर भद्रबाहु ने कहा - "भद्र ! हम लोग कभी असत्य भाषण नहीं करते। अच्छी तरह से देखो, उस लोहे की अर्गला के अग्रभाग पर बिल्ली का रेखांकित चित्र है। वराहमिहिर ने देखा कि वस्तुतः पागल के अग्रभाग पर बिल्ली का चित्र खुदा हुआ है । तदनन्लर उसने कहा - "पुत्र की मृत्यु के शोक से मुझे उतना कष्ट नहीं हो रहा है, जितना कि राजा के समक्ष मेरे द्वारा की गई अपने पुत्र के शतायु होने की भविष्यवाणी के असत्य सिद्ध होने से। धिक्कार है इन मेरी सब पुस्तकों को, जिन पर विश्वास करके मैंने भविष्यवाणी की। ये सब पुस्तकें असत्य हैं। मैं इन सब को अभी नष्ट किये. देता हूं।" यह कहते हुए वराहमिहिर अपनी सब पुस्तकों को जल से भरे कुडों में डालने के लिये उद्यत हुप्रा । भद्रबाह ने उसे रोकते हुए कहा - "तुमने अपने प्रमाद के कारण ज्ञान को कलुषित किया है, इन पुस्तकों पर तुम व्यर्थ ही कुपित होते हो। ये पुस्तकें तो सर्वज्ञभाषित बातों को ही प्रकट करती हैं। वस्तुतः इनके ज्ञाता लोग ही दुर्लभ हैं। देखो तुमने भविष्य-कथन के समय अमुक-अमुक स्थान पर मतिविभ्रम के कारण त्रुटि की है। अतः तुम इन पुस्तकों की नहीं प्रत्युत अपनी स्वयं की निन्दा करो। तुम अपने पाण्डित्य के मद में मदोन्मत्त हो गये हो । प्रमत्त पुरुष में सूक्ष्म दृष्टि से विचार करने की क्षमता नहीं रहती। अपराध तुम्हारा ही है, न कि इन पुस्तकों का प्रतः इन पुस्तकों को विनष्ट मत करो।"
- भद्रबाहु की बात सुनकर बराहमिहिर किंकर्तव्यविमूढ़ की तरह शोकमग्न मुद्रा में एक ओर बैठ गया। वराहमिहिर की यह स्थिति देखकर एक श्रावक बोला- "वह रात्रि व्यतीत हो चुकी जिसमें तुम्हारे जैसे खद्योत भी टिमटिमा कर प्रकाश करने का दम भरते थे। अब तो सूर्य की प्रखर किरणों से दशों दिशाओं को प्रकाशमान करता हुआ दिवस आ गया है । इस दिवस में तुम्हारे जैसे खद्योतों की तो सामर्थ्य ही क्या स्वयं निशानाथ चन्द्रमा का भी कहीं पता नहीं है।" यह कहकर वह श्रावक तत्काल वहां से चल दिया। वराहमिहिर को मन ही मन असह्य पीड़ा का अनुभव हुआ।
उसी समय प्रतिष्ठानपुर के महाराज वराहमिहिर के घर पर आये और शोकसन्तप्त वराहमिहिर को सान्त्वना देते हुए उन्होंने कहा - "पुरोहितराज ! इस प्रकार शोकसागर में निमग्न न होमो, यह तो संसार का अटल नियम है कि एक पाता है और चला जाता है।"
उसी समय एक मन्त्री ने राजा से निवेदन किया - "महाराज ! ये आचार्यश्री इन्हीं दिनों यहां पधारे हैं। इन्होंने हो वराहमिहिर के नवजात शिशु की प्रायु सात दिन की वताई थी। आपका नाम ग्राचार्य भद्रवाह है। अापकी भविष्यवाणी वस्तुतः सत्य सिद्ध हुई।" ___यह सुनकर दुःखी वराहमिहिर और अधिक दुःखी हुअा। राजा ने श्रावकधर्म ग्रहण किया और तदनन्तर सब अपने-अपने स्थान को लौट गये ।
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