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शिशु० का संक्षिप्त परिचय] केवलिकाल : भार्य जम्बू
२५१ मागध दूत के मुख से मगवपति श्रेणिक द्वारा अपनी सुज्येष्ठा नामक राजकुमारी की याचना का संदेश सुनकर महाराजा चेटक ने कहा :
"दूत ! तुम्हारे स्वामी को अपने स्वयं के सम्बन्ध में वास्तविक स्थिति का ज्ञान नहीं है। यही कारण है कि वाहीक' कुल में उत्पन्न होकर भी वह हैहय वंश की कन्या के साथ पाणिग्रहण करना चाहते हैं। समान कुल वालों में ही परस्पर वैवाहिक सम्बन्ध हो सकते हैं न कि असमान कुलों में। अतः मैं अपनी कन्या श्रेणिक को नहीं दूंगा। अब तुम यहां से यथेच्छ जा सकते हो।" .
"वाहीककुलजो" इस वाक्यांश से यह तथ्य प्रकट होता है कि उपरिवरिणत बिम्बसार आदि मगध सम्राट् वाहीक कुलोद्भव थे।
विश्लेषणात्मक दृष्टि से विचार किया जाय तो शिशुनागवंश एक प्रतापी पुरुष के प्रताप का द्योतक होने के कारण कोई मूलवंथ नहीं किन्तु एक वंश विशेष के व्यक्तियों की शाखा का वोधक है। किसी एक वंशविशेष में शिशुनाग नामक प्रतापी और प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति उत्पन्न हुआ, उसने एक राज्य की स्थापना की। उस वंश के अन्यान्य सहस्रों अथवा लाखों व्यक्तियों से अपनी विशिष्टता अभिव्यक्त करने हेतु उस शिशुनाग को संतति अपना परिचय शिशुनागवंशी के रूप में देने लगी।
इसी प्रकार "वाहीक" भी कोई मूलवंश नहीं। "वाहीक" शब्द के तीन अर्थ हो सकते हैं - (१) वाहीक अथवा वाल्हीक देश का रहने वाला, (२) वाहीक बाह्य देश का रहने वाला और (३) वाहीक-बाह्य-बहिष्कृत (जाति से बहिष्कार किया हुमा) व्यक्ति अथवा जाति। इन तीनों प्रयों में से इन मगध सम्राटों पर कौनसा अर्थ लागू होता है यह एक विचारणीय विषय है। .
प्राचार्य हेमचन्द्र द्वारा प्रयुक्त "वाहीककुलजो" पद को लेकर अनेक पाश्चात्य एवं भारतीय इतिहासकारों ने कल्पना की बहुत लम्बी लम्बीउड़ानें भरी हैं। प्रसिद्ध इतिहासविद् ए. के. मजूमदार ने अपनी पुस्तक "दी हिन्दू हिस्ट्री माफ इन्डिया" के पृष्ठ ४६६ पर लिखा है :
"Shishunaga was formerly a vassal of the Turanian Vrijjians. He founded his dynasty of ten Kings and ruled for 250 years."
दी जरनल प्राफ दी मोरिसा-बिहार रिसर्च सोसायटी, पुस्तक संख्या १, पृष्ठ ७६ पर यह उल्लेख है :
"The Pali writers relate that the Sisunagas belonged to the family of Vaishali (Lichhavis). 'पहिावनाम हीकश्च, विपाशायां पिशापको ॥४१॥ : .. तयोरपत्यं बाहीका, नपा सृष्टिः प्रजापतेः। [महाभारत, कर्णपर्व, प..] .
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