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२७४ , जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [उदायी एवं नंद विषयक मा० पुत्र अनुरुद्ध को राज्यभार सौंपा जा कर यात्रा, प्रात्मसाधना में निरत रहने का उल्लेख किया गया है।
__ लंका में लिखित बौद्ध ग्रंथ महावंश में तथा एक अन्य बौद्ध कृति अशोकावदान में मगधपति उदायी की मृत्यु के पश्चात् ६ वर्ष तक अनुरुद्ध और २ वर्ष तक मुन्द का मगध पर शासन रहने का उल्लेख किया गया है।
वायुपुराण में मगधसम्राट् बिम्बसार के पुत्र अजातशत्रु कूणिक का दर्शक के नाम से परिचय दिया गया है और जैन ग्रंथों की मान्यता के अनुरूप उसके पुत्र का नाम उदायी बताया गया है। उदायी के पश्चात् वायुपुराण में नन्दिवर्द्धन को मगध का शासक बताते हुए लिखा गया है कि नन्दिवर्द्धन ने ४२ वर्ष तक मगध का शासन किया।'
. श्रीमद्भागवत पुराण में उदायी को अज और उसके उत्तराधिकारी मगध के राजा नन्दिवर्द्धन (नन्द) को प्राजेय के नाम से सम्बोधित किया गया है। गर्ग संहिता में उदायी को "धर्मात्मा उदयन" के सम्मानपूर्ण सम्बोधन से सम्बोधित किया गया है। बौद्धों के सर्वमान्य धर्मग्रंथ दीर्घनिकाय में उदायी का "उदायी भह" नाम से परिचय दिया गया है जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वस्तुतः उदायी बड़ा शान्त, निश्छल, सौम्य और बहुत अच्छी प्रकृति का राजा था।
ऐतिहासिक महत्त्व के 'महावंशो" नामक लंका में निर्मित ग्रंथ में उदायी के अनुरुद्ध और मुंद नामक दो पुत्रों के होने का जो उल्लेख किया गया है, उस उल्लेख के अाधार पर कतिपय विद्वानों ने यह मान्यता अभिव्यक्त की है कि उदासी ने अथवा उदायी के निर्देश से उसके बड़े पुत्र अनुरुद्ध ने लंका पर सैनिक अभियान किया एवं वहां के राजा को युद्ध में पराजित कर लंका में अनुरुद्धपुर नामक नगर बसाया और उसमें लंका की राजधानी प्रतिष्ठापित की। ‘महावंशो' के आधार पर कतिपय विद्वानों ने उदायी के पश्चात् उसके ज्येष्ठ पुत्र अनुरुद्ध का मगध साम्राज्य पर ६ वर्ष का और उसके पश्चात् उसके लघु सहोदर मुंद का दो वर्ष का शासनकाल माना है। किन्तु इन तथ्यों की किसी भी प्रामाणिक अभिलेख अथवा ग्रंथ आदि से न केवल पुष्टि ही नहीं होती अपितु प्राचीन जैन ग्रंथों एवं पौराणिक ग्रन्थों में उदायी के पश्चात् दिये गये नन्द अथवा नन्दिवर्द्धन के राज्य के उल्लेखों से 'महावंशो' की मान्यता का मूलतः निराकरण होता है । माज तक एक भी ऐसा प्रामाणिक ग्रन्थ प्रकाश में नहीं आया है, जिसमें उदायी के पश्चात् और नन्द अथवा नन्दिवर्द्धन से पूर्व मगध पर अनुरुद्ध और मंद के शासन का उल्लेख हो । ऐसी दशा में 'महावंशो' के प्राधार पर कतिपय विद्वानों द्वारा अभिव्यक्त की गई मान्यता को काल्पनिक न सही पर विश्वसनीय कभी नहीं माना जा सकता।
लोक संख्या १७७-१७८ तथा : द्वावस्वारिमसमा माग्यो राजा वं नन्दिवदनः ॥१७६।। वायुपुराण, म० ६१]
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