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परिणकका दृष्टांत श्रुतकेवली-काल : प्राचार्य प्रभवस्वामी
३११ रक्षकों की उचित सलाह को अस्वीकार करते हुए उस व्यापारी ने कहा"भविष्य का लाभ संदिग्ध है, ऐसी दशा में जो पास में है, उसका परित्याग करना बुद्धिमानी नहीं" और वह उन फुटकर सिक्कों को बीनने में जुट गया ।
साथ के अन्य लोग और सार्थ के रक्षक उस व्यापारी के माल से भरे गाड़ों को वहीं छोड़ कर भागे बढ़ गये । व्यापारी राह में बिखरे सिक्कों को बीनता रहा और शेष सार्थ रक्षकों के साथ-साथ उस घने जंगल से पार हो गया।
उस व्यापारी के साथ रक्षकों को न देख कर चोरों के एक दल ने पाक्रमण किया और वे व्यापारी का सारा माल लूट कर ले गये।"
जम्बूकुमार ने दृष्टान्त को दार्टान्तिकरूप से घटित करते हुए कहा - "जो मनुष्य विषयों के तुच्छ और नाममात्र के तथाकथित सुख में ग्रासक्त हो भावी मोमसुख की प्राप्ति का प्रयास छोड़ देते हैं, वे संसार में अनन्तकाल तक भ्रमण करते हुए उसी प्रकार शोक और दुःख. से ग्रस्त रहते हैं, जैसे कौड़ियों के लोभ में करोड़ों की सम्पत्ति गंवा देने वाला यह व्यापारी।"
.प्रमय का प्रात्मचिंतन जम्बूकुमार द्वारा कही गई हित-मित-तथ्य-युक्ति प्रौर विरक्तिपूर्ण उपर्युक्त बातों को सुनने के पश्चात् प्रभव के अन्तर्चक्ष कुछ उन्मीलित हुए, उसके हृदय में एक प्रकार की हलचल सी प्रारम्भ हुई। उसके अन्तर्मन में विचारों का फव्वारा फूट पड़ा। उसने सोचा- "यह अतिशय कान्त, परम सुकुमार, सुधांशु से भी सौम्य, सर्वांगसुन्दर एवं मनमोहक अनुपम स्वरूप, कुवेरोपम अपरिमित वैभव, सुरवालानों के समान अनिन्द्य सौन्दर्य एवं सर्वगुण सम्पन्न पाठ पत्नियां, भव्यभवन भोर सहज सुलभ प्रचुर भोग सामग्री-इन सब का तृणवत् परित्याग कर एक मोर जम्बूकुमार मुक्तिपथ के पथिक बन रहे हैं । इसके विपरीत दूसरी मोर में अपने पांच सौ साथियों के साथ दूसरे लोगों की उनके द्वारा कठोर परिश्रम से उपार्जित सम्पत्ति लूटने के जघन्य दुष्कृत्य में रात-दिन निरत है। मैंने अगणित लोगों को उनकी प्रिय सम्पत्ति से वंचित करके रुलाया है, उनके सर्वस्व का अपहरण कर उनके जीवन को दुखमय बना डाला है । हाय ! मैंने लूट-मार मौर चोरी के अनैतिक, सामाजिक और धुरिणत कार्य को अपना कर घोरातिधोर पाप-पुंजों का उपार्जन कर लिया है। निश्चित रूप से मेरा भविष्य बड़ा ही भीषण, दुःखदायी-मोर अन्धकारपूर्ण है।"
अपने कुकर्मों का फल कितना दारुण पौर भयावह होगा? यह विचार माते ही प्रभव सिहर उठा । उसने तत्काल दृढ़ निश्चय किया कि प्रब वह सब प्रकार के पापपूर्ण कार्यों का परित्याग कर एवं समस्त विषयोपभोगों से विरक्त हो अपने बिगड़े भविष्य को सुधारने में प्रौर प्रात्मकल्याण में जुट जायगा।
मन ही मन यह निश्चय कर प्रभव ने अपना मस्तक जम्बूकुमार के चरणों पर रखते हुए हाथ जोड़ कर कहा - "स्वामिन् ! पाप मेरे गुरु हैं मोर में मापका
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